सच मिमियाते हुए बच्चा लगता है
झूठ दबंगता में सच्चा लगता है...
कैसे हो सच और झूठ का फैसला
सच हो लंगड़ा तो झूठ तगड़ा लगता है...
दो कदम भी तो चलना नहीं है सच पाने को
खुद में झाँक लेना मगर कसेला लगता है...
सच के मुखोटे लगाये रखना बहुत जरुरी है दोस्त
झूठ वर्ना बहुत विषेला लगता है...
खोया रहना चाहता है 'मनीष' भी इस भेड़-चाल में
ज़िन्दगी जीने को मगर जिगर एक अकेला लगता है...
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