चंद अशियार, शायद बेकार.. पर क्या करूँ यार...,
कह-सुन लेता हूँ खुद से ही की शायद.. आ जाए करार..!!
वो दर्द-ए-दिल ही तो है जिसका कोई जवाब नहीं होता,
तीर लगा है कुछ इस कदर की दर्द में दर्द का एहसास नहीं होता..!!
हँसता है मरीज-ए-इश्क खुद ही अपनी हालत पर,
करता है लाख निदान पर इलाज नहीं होता..!१
इतनी मुद्दत हुई है तुझसे बिछड़े हुए के याद नहीं,
भूल जाऊं मगर वायेदा वस्ल का, ये गुनाह नहीं होता..!!
और..
अपनी किस्मत से मलाल है जिन्हें,
ज़िन्दगी कर रही हलाल है उन्हें..!!
नाशुक्रानियत की हद तो देखिये जनाब,
के खुदा के रहम पर भी सवाल है उन्हें..!!
ज़िन्दगी नहीं, ख्वाहिशें है कसूरवार,
कैसे आये सुकून होकर दो कश्तियों पे सवार..!!
एक है गुजरे वक़्त की यादों से डगमग,
तो दूजी में कल की हसरतें हज़ार..!!
मनवा रहत सुख-दुःख मा,
ऊ का जाने आनंद भये उस पार,
जीवन गुजरे चार दिन मा,
दो सोचत निकास गए, दो करत बिचार..!!
और ये भी की..
देने चले हैं वो मुझे अपनी जान तोहफे में,
इश्क के रसूलों का जिन्हें कुछ पता नहीं..!!
मार डालना पड़ता है खुदी को यहाँ,
जिस्म के दफ़न से होता नहीं कुर्बान कोई..!!
खुदा बनना चाहता है सिर्फ वो एहमक...,
समझता खुद को जो खुदा से अलग है..!!
लहरों से ले सको तो ले लो ये सबक मुफ्त में...,
सागरों से कब हो सका तूफ़ान अलग है..!!
कागज़ की कश्ती, पानी का किनारा,
खेलने की मस्ती, दिल ये आवारा,
कहाँ पड़ गए इस समझदारी के दलदल में..??
सीनाजोर है जवानी, नादान बचपन प्यारा,
तो चलो फिर बच्चों से हो जाएँ..!!
अब क्या बताएँ की..
एक मक्खी नाफ़रमानी की,
bhanbhanane lagi कल ghus के girebaan में..,,
udd gayi फिर वो tavakko की nigahbaani में..!!