or
one line sentences...
Just as Dainik Bhakar newspaper wrote a one liner of Swami Vivekanand:
"दूसरों के अवगुणों की चर्चा करना
स्वयं के अवगुणों को प्रकट करना है"
Now, i am pretty sure that Swamiji must have said the above statement as a part of the whole lecture on the subject of non-duality or realizing self but media, as is their habit whether it comes to news or facts, confuses us.
दूसरों के अवगुणों की चर्चा करना जब
स्वयं के अवगुणों को अद्वितीय रूप से प्रकट करना है स्वामी..
तो
क्यूँ ना हम उन अवगुणों का अवलोकन कर,
उन्हें प्रचारित कर,
उनसे लाभ उठाने के बजाये,
उन्हें सगुणों में रूपांतरित करने की साधना करें स्वामी....??
Please go through few more examples of Dainik Bhaskar's ridiculous sense of using one liners:
बात पते की...सुविचार
३१ मई, २०१२
"अपनी कद्र करना चाहते हो तो अपनी वाणी की कद्र करना सीखो I कम बोलो, काम का बोलो I
कम बोलना सीख रहा हूँ मुनिश्री,
काम का भी बोलूँ या चुप ही रहूँ मुनिश्री,
क्यूंकि
समाज तो आप जैसे कद्र्धारी और क्रांतिकारी को भी
कड़वे वचनों का मुनि कहता है मुनिश्री....!!
हक़ीक़त वो है
जो तुम मानते हो, जानते हो और
दिल ही दिल महसूस करते हो....,
बाकी सब तो बस
ख्याल है, माया है और है दिमागी भरम...
a kind of dim_aag so to speak !!
५ जून, २०१२
"सार्थक और प्रभावी उपदेश वह है, जो वाणी से नहीं अपने आचरण से प्रस्तुत किया जाता है I "
कृष्ण का गीता के माध्यम से
हमें और अर्जुन को ज्ञान देकर
अधर्म और अन्याय के विरुद्ध "युद्ध कर" कहना भी
अभिमानपूर्वक उपदेश देना ही था क्या....?
"Human beings are godly products
of a unique sperm fusing with a unique ova
out of the catalyst of love...
Does not matter what their egoistic mind thinks or makes them later on."
६ जून, २०१२
"जो दुसरो को जानता है वो विद्वान् है,
और जो खुद को जानता है वो ज्ञानी है I"
"असफल व्यक्तियों में से निन्यानवे प्रतिशत वे लोग होते हैं,
जिनकी आदत बहाने बनाने की होती है I"
लाओत्से तो George Washington जैसे अभिमानियों को
जो name fame money
कमाने वालों को ही सफल मानते हैं को
ज्ञानी क्या विद्वान् भी ना कह पाते....!!
इश्क आजमाने वालों को इश्क नहीं
इल्म है किताबी
वफ़ा से है इश्क जिन्हें
उनकी अक्ल में है खराबी
विरानगी ही हक़ीक़त बनी रहेगी उनकी
ज़िन्दगी जी रहें जो
बन के साहब नवाबी....!!
८ जून, २०१२
Today i read Shri Mander Harsh's article "आखिर गरीबी के माईने क्या?" on the editorial page of Dainik Bhaskar newspaper...
i am in shock and ashamed to consider myself poor.
हालात वैसे ही होते हैं
जैसा हमारा इल्म-ए-वक़्त होता है
किसी के लिए पानी का ग्लास आधा भरा हुआ
तो
किसी के लिए आधा खाली होता है...
सूफियों के लिए मगर
बस...
वो प्यास बुझाने का ज़रिया होता है I
वक़्त तो एक जैसा ही होता है मेरी जान..!!
हाँ लेकिन..,
मेरा एक तरफ़ा देखने वाला मनवा जरुर
एक ही वक़्त में पैदा कर लेता है कई-कई तूफ़ान..!!
आमिर खां साहब
४० करोड़ लोगों के
सिर्फ कानों या आँखों में नहीं पहुँचते
वे दिल में इस कदर समा जाते हैं
की
उनसे जलने वाले लोगों को भी
मजबूरन अच्छाई का नकाब ओढ़ना पड़ता है...!!
१३ जून, २०१२
"हमारा लेखन ऐसा नहीं होना चाहिए की पाठक हमें समझ पायें, बल्कि ऐसा होना चाहिए की वह किसी भी तरह हमें गलत ना समझ जाए I "
लेखक गलत ना समझे जाने के चक्कर में
वो लिख बैठता है जो राजनितिक है
समझने वाले तो
उस जीसस के कहे को भी गलत समझ बैठते हैं
जो पूरी तरह से आध्यात्मिक है
तो क्या करें..??
क्विंटल से राजनितिक हो जाएँ
या
तोले से आध्यात्मिक रहें..??
मनीष तो सीधा ही बोलता है
पर
ये खडूस मन उसके चाल-चलन और उसके बोल-वचन को
उल्टा साबित कर देता है
क्या करें..
की मसला रूहानी के बजाये
जिस्मानी और बातूनी होता जाता है
ज़र्फ़ दिलों का खोता चला जाता है
इल्म इश्क पे हावी हो जाता है...
तुम्हारे इस मुरीद पर रहम बक्शो
या वारिस पाक शाह....!!
या ख्वाजा गरीब नवाज....!!
शुक्रगुज़ार हूँ आपका मैं सरकार
की
बक्श दी मुफ्त में ही हम गरीबों को नेमतें हज़ार
कोई इस रंग में है
तो
कोई उस रंग में है...
एक ही रंग से सतरंगी रंग दियो संसार....!!
१६ जून, २०१२
टाइम मैगज़ीन और हॉवर्ड बिजनेस रिव्यू सिर्फ दैनिक भास्कर के साथ
देखो अब "दैनिक भास्कर" का दस्तूर
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नाही फल लागत अति दूर
रंग बदलत है गिरगिट ऊपर-ऊपर को
भीतर-भीतर रहत मगरूर...
१८ जून, २०१२
"बदलाव" को केंद्र बनाए हुए है आज के दैनिक भास्कर का सम्पादकीय पृष्ठ
वाह टोनी जोसेफ भाई वाह..!!
"इन्सान वो नहीं जो हवा के साथ बदले
इन्सान वो जो हवा का रुख बदले"
हमारे मनमोहन सिंह मगर ना बदले...
"जीवन है आल पिन
दो ही तरीके हैं जीने के
या तो सहमत या सह मत"
विजय मंज़िल पाने में नहीं
विजय कोशिश करने में है सिंह..!!
२० जून,२०१२
"इतने भगवान् और इतने धर्म और इतनी घुमावदार राहें I सिर्फ करूणा की कला की जरुरत है इस दुखी संसार को I"
अब व्हीलर साहब ने भी करूणा का एक और धर्म रच दिया,
आज सुप्रीम कोर्ट ने पाक पम को अयोग्य कह दिया,
भक्त को विदेशी कह भास्कर भी आग उगले,
शुक्र दरगाही उत्सवों की
क गब्बर बोल उठा की
साला नरेन्द्र मोदी और मनमोहन सिंह आज फिर बच गया..!!
२१ जून, २०१२
मुख पृष्ठ के समाचारों की सुर्खियाँ :
कुदरत की चुक कहता है जिसे दैनिक भास्कर
ये कह क्या वो विज्ञान को इलाही
और खुद को मगरूर नहीं कह रहा..??
है अगर इतना ही महान वो
तो
ये स्तुति-आराधना-प्रार्थना भी क्यूँ..??
कर ले ना वो अपने ही दम पर हर मुराद पूरी
बना ले ना इन्सान को इस जगत की धुरी
गोद पर्तिक्ले धुन्धने की ऐसे क्या है मज़बूरी..??
या फिर
छपे ना बातें आधी-अधूरी....!!
नज़र-नज़र का फेर है मेरा दाता
किसी को मंदिर, मस्जिद, चुर्च के अन्दर
तो
किसी को कुदरत के हर तत्व में वो ही रोशन नज़र है आता....!!
बक्श हमें नज़र तेरी, दीदार तेरा ओ मेरे दाता....!!
75% of Dainik Bhaskar newspaper, most of the TIME is full of advertisements.
25% of it is news and most of them are either negative, half or pathetic.
Why does DB indulge in so much victimisation of its own readers....??
Is SUN (bhaskar) transforming into EARTH....??
Reply HOWARD
Re ply soon !!
२३ जून, २०१२
Who is Dainik Bhaskar to decide who are the ICON's of UJJAIN?
Is being a regular advertisement provider to Dainik Bhaskar an important criteria?
Did Dainik Bhaskar conduct any professional survey to print and decide the ICON's of UJJAIN?
Can Dainik Bhaskar reply?
२३ जून, २०१२
"बोलना अगर चांदी है तो चुप रहना सोना I चुप रहना जीवन की एक बड़ी साधना है I"
क्या हमें ज्वेलर समझा है मुनिश्री जो हम सोने-चांदी के चक्कर में कुय्च करेंगे..??
हम उसी लिए बोलते हैं मुनिश्री की जिसलिए आप..
चुप रहें हम क्यूँ
जब मौन की साधना करो ना तुम..??
२५ जून,२०१२
देशभर में IMA के doctors हड़ताल पर:
इमा को नहीं करवाना है खुद का उपचार,
Doctors का साथ देने हेतु तुरंत खड़े हुए M.R ,
क्यूँ ना हों..??
क मरीज nahi doctors देते हैं उन्हें व्यापार,
वाह मेरे यारों के यार !!
२६ जून, २०१२
हम अगर किसी की चीज की कल्पना कर सकते हैं तो उसे साकार भी कर सकते हैं I
- nepolean hill
nepolean hill से पुछा जाए की क्या उनकी खुद की सारी कल्पनाएँ साकार हुईं..??
और
हुईं भी अगर तो मौत की सुई निराकार हुई क्या..??
जागो दैनिक भास्कर जागो !!
२७ जून, २०१२
"जो लूटाओगे वही लौटकर आएगा I फुल लुटाओगे तो फुल मिलेंगे और कांटे लूटोगे तो कांटे I "
- मुनिश्री तरूणसागर
एक फुल आप भी स्वीकार करें मुनिश्री,
मिलने-खोने के पार आ जाएँ मुनिश्री,
तरूणता में भी सागर ही हैं आप,
अर्ध-सत्य वचनों को यूँ ना लुटाएं मुनिश्री...
28 june,2012
"छोटे लोग आपकी महत्वाकांक्षाओं को तूच्छ बनाने का प्रयास करते हैं, वहीँ महान लोग महान बनने की प्रेरणा देते हैं I"
- मार्क ट्वैन
महान बनने की महत्त्व आकांक्षा आपको मार्क ट्वैन सा दार्शनिक या शाह रुख खां सा सफल तो बना सकती है
पर
साईं बाबा जैसा भगवान् या आमिर खां जैसा प्रेमी इन्सान नहीं बना सकती...नहीं कभी नहीं - कदापि नहीं
जागो भास्कारी जागो !!
No one liners please - present us between the liners please.
२९ जून, २०१२
"संदेह का कार्य और परिणाम क्षय रोग के कीटाणु की तरह होता है I
मनुष्य के विनाश का वही जन्मदाता है I"
- श्री सत्यसाई
संदेह ना किया होता श्री सत्य साईं पर
तो जान ही ना पाते हम की वो साईं नहीं
क्षय रोग से पीड़ित महज एक मदारी है
धन और वैभव का पुजारी है
संदेह तत्व ही तो मूल में है
समस्त वैज्ञानिक अविष्कारों के पीछे
आप ही बताएँ
कैसे जान पायेंगे हम सत्य
गर संत हमारे निर्मल बाबा जैसे व्यापारी हैं
ऐसे गुरु तो चाहेंगे ही
की उनके शिष्य उनपर संदेह ना करें
और सदा बने रहें एकदम आज्ञाकारी
विनाश की बात पते की होकर भी
हो सकती अज्ञानकारी है
बोलो दैनिक भास्कर बोलो
मन की आँखें खोलो इ
३० जून, २०१२
"लोगों के साथ सामंजस्य बना कर रहना सफल होने का महत्वपूर्ण सूत्र है I"
लोगों के साथ सामंजस्य बना कर तो निर्मल बाबा और हिटलर जैसी आत्माओं ने भी क्षणिक सफलता प्राप्त कर ली थी दैनिक भास्कारी जी
पर
ये सफलता महत्त्व पूर्ण नहीं अयोग्य पूर्ण ही रही...
नहीं..??
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ReplyDeleteشقق فندقية الرياض حي الياسمين
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