अलफ़ाज़ मेरे...
सिर्फ ख़ुशी चुनेगा जब मन
तो
साथ-साथ चले आयेंगे ही ग़म
ठीक वैसे ही
जैसे
हर साँस देती है हमें दम
और
ज़िन्दगी भी...
फूलों के ही दीवाने हैं सब
हम काँटो से दिल कौन लगाये
काँटे ही लिए बैठे हैं अब
फुल तो जाने कब के मुरझाये
चुनने की भूल की थी तब
अब तो ये राज साफ़ नज़र आए
खुशबु बनके महेके है रब
रब ही तो हैं काँटो में समाये
मन मगर आज भी खुद को
इश से भी बुद्धिमान
और
खुदा से भी बड़ा
समझता ही जाए...
सिर्फ उनकी ही पूरी ज़िन्दगी उलझ जाती है
"क्या बोलना है - कैसे बोलना है"
सीखने के चक्कर में
जो अहंकार वश दूसरों को
प्रभावित करने हेतु ही बोलना चाहते हैं
वर्ना तो
दिल से अगर बोला जाए
तो
बोलना बहुत ही सरल है...
अपने-पराये का भेद करने वाले मन का
गुलाम होकर जीना
तो
मौत से भी बदतर है भाई जान...
फिर ना कहना
की
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
क्यूंकि दिल ख्याल करता ही नहीं
सिर्फ और सिर्फ धड़कता है
और वो भी
अंग-अंग को सेहतपूर्ण ढंग से
जिंदा रखने के लिए
फिर ये भी जान
की
इन्ही ख्यालों से तेरा एक हो जाना
तुझे तेरे खुदा से दूर कर
तुझे काफिर बना देता है...
इमानदारी से जीने को जो सजा समझे
होता उसमे ईमान ही नहीं
इस जहानियत को जो खुदा की खुदाई ना जाने
होता वो इन्सान ही नहीं
हक़ीक़त से तड़प कर ख्वाब देखे जो
जन्नत में सुकून के
होता उस दोजखी से कोई नादान ही नहीं...
जो दोस्तों में भी फर्क देखे
उन्हें
काम का या नाकामी होने का
वो
प्रेमी ही नहीं हो सका जब
तो
दोस्त क्या ख़ाक बनेगा
वो तो बस आदतन
दुनिया को और दुनियावालों को
"मुख्तलिफ" ही कहेगा
मौकापरस्त है जो
वो
इमानदार क्या ख़ाक रहेगा...
कहते हैं गाँधी जी
की
"जो कला आत्मा को आत्मदर्शन की शिक्षा नहीं देती वो कला नहीं है"
कहत हैं हम
की
आज के कलाकार मगर
चुप्पी को अपना शस्त्र बना
मौन को पाखंड की तरह अपना
होकर के पूर्ण ढोंगी बाबा
अक्षयी कला के द्वारा अपना धंधा जमाते हैं...
ज़िन्दगी जीने का मगर एक और अंदाज़ भी है
और वो अंदाज़ बेमिसाल है
पल-पल खतरों से खेलने वाला इन्सान भी एक बा-कमाल है
मौत है उसकी माशुका
और कातिल उसका बे-हाल है...
बेहतर शख्स बन जाने की अपनी इल्म भरी धारणा से
वो लोग शिक्षित करना चाहते हैं मुझे
जो
खुद इश्क भरी दीवानगी को बदतर समझते हैं
जिन्होंने
ईमान का मंजर देखा ही नहीं...
ओशो कहते हैं
की
वो मन जिसमे शब्दों की कोई सीमा नहीं
कोई शुद्रता नहीं
उसी मन का नाम आत्मा है
वो मन जो विचारों की दीवालों में क़ैद नहीं
उसी मन का नाम परमात्मा है
वो मन एक विराट चैतन्य है
उसकी प्रतीति व्याप्त है
वही आनंद है
वही परमानन्द है
वही सच्चिदानंद है
No comments:
Post a Comment
Please Feel Free To Comment....please do....