हर सुबह ये ख्याल
दिन बिताऊं खुशहाल
रात होते-होते मगर
खुद ही बन जाता हूँ सवाल...
बना जो मैं सवाल
तो मच जाता है बवाल
आलम अब ये की
रोज़ होता हूँ हलाल...
बात ये नहीं की
हूँ मैं कोई कलाल
होश करना आया नहीं
फ़क़त इसका है मलाल...
सोचता हूँ गले लगा लूँ उसको
जो भी है फिलहाल
सोच अमल में आये तो
ज़िस्त है खुशहाल...
फिर सोच में अटक गए
'मनीष' तुम हो कमाल
मन इश हो या के मन इश है?
ज़रा देखो अपना हाल...!!
Man is a bad case....isnt it?
Saturday, June 19, 2010
तू
लिपटा हुआ हूँ
बदन से तेरे
मैं हवाओं की तरह......,
अब ये बात और
की तू हवा भी है
और बदन भी तू ही.....!!
तू ज़मीन तू आसमां
और ज़मीर भी है तू.....,
आग है तू
बरसे जो सावन की तरह......!!
ये चेहरा
वो चेहरा
चेहरे ही चेहरे.....,
हर सूरत रोशन मगर
तेरे ही नूर से.....!!
बदन से तेरे
मैं हवाओं की तरह......,
अब ये बात और
की तू हवा भी है
और बदन भी तू ही.....!!
तू ज़मीन तू आसमां
और ज़मीर भी है तू.....,
आग है तू
बरसे जो सावन की तरह......!!
ये चेहरा
वो चेहरा
चेहरे ही चेहरे.....,
हर सूरत रोशन मगर
तेरे ही नूर से.....!!
Sunday, June 13, 2010
ASK A KRISHNA.....?
The commotion that goes on the outside
is just an indication of the struggle within;
an internal war..an internal conflict
between what you are and what you should be..
Stop thinking and just be you.
Do you know the real you
Do you accept it just as it is..
Do you know the real acceptance..
Acceptance just for the sake of accepting
is bookish...
Acceptance comes along with free will
that ain't boorish...
Exercising that free will needs
courage and righteousness...
That courage and righteousness
comes from being aware...
Awareness is indeed choiceless
but
Karma is inevitable
and
Aware Karma is Godish...
ASK A KRISHNA.....?
कृष्ण तुलनाओं से परे ही रहता है
न राधा और न ही सुदामा को वो चुनता है
वो प्रेम पुंज, वो सत्यवान, वो ही धर्म
खोखली धार्मिकता देख पुनः पुनः उतरता है...
is just an indication of the struggle within;
an internal war..an internal conflict
between what you are and what you should be..
Stop thinking and just be you.
Do you know the real you
Do you accept it just as it is..
Do you know the real acceptance..
Acceptance just for the sake of accepting
is bookish...
Acceptance comes along with free will
that ain't boorish...
Exercising that free will needs
courage and righteousness...
That courage and righteousness
comes from being aware...
Awareness is indeed choiceless
but
Karma is inevitable
and
Aware Karma is Godish...
ASK A KRISHNA.....?
कृष्ण तुलनाओं से परे ही रहता है
न राधा और न ही सुदामा को वो चुनता है
वो प्रेम पुंज, वो सत्यवान, वो ही धर्म
खोखली धार्मिकता देख पुनः पुनः उतरता है...
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