" पैदा होते ही में बहुत रोया-चिल्लाया,
पहली साँस लेते ही जी घबराया,
माँ ने झट छाती से लगाया,
तब जाकर थोड़ा सुकून था आया !
लोगों ने फ़िर मुझे तमाशा बनाया,
किसी ने बाप तो किसी ने माँ सा बताया,
मेरा अपना भी कोई वजूद हो सकता है,
ये तो जैसे कोई सोच भी न पाया !
पाठशाला ने ये सबक रटाया,
सबसे अव्वल होने को ही सफलता बताया,
सभी अपने आप में अद्वितीय हैं,
ये तो किसी ने न सिखलाया !
महत्वाकांक्षा के बीज बोता गया समाज मुझमें,
सभी ने कुछ बन जाने को उकसाया,
कुछ बन जाने की होड़ में खो दूंगा ख़ुद को,
ये राज़ तो बहुत बाद समझ में आया !
पैदा होते ही में बहुत रोया-चिल्लाया......
पर क्यूँ ??? "
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