Saturday, August 14, 2010

मेरे हमवतनो...


मेरे हमवतनो



क्या चाहते हो तुम, मेरे हमवतनो ?
क्या ये
की खोखली इबारतों से सजे
आलिशान हरम बनाऊं मैं तुम्हारे  लिए ?
या ये
की बनाऊं ख्वाबी शिवाले ?
या
चाहते हो के तोड़ डालूं
वो जो बनाया झूठों और तानाशाहों ने ?
क्या सच में ही खोद दूँ
वो जो गोद दिया फरेबियों और मक्कारों ने ?
बोलो..
क्या है तुम्हारी विक्षिप्त तमन्ना !



क्या है वो जो तुम मुझसे करवाना चाहोगे,
मेरे हमवतनो ?
क्या मैं तुम्हारी संतुष्टि के लिए
घुर्घुराउन किसी बिल्ली की तरह,
या
दहाडू  किसी शेर की तरह
स्वयं के आनंद के लिए ?



मैं गीत गा चूका हूँ तुम्हारे लिए,
पर तुम कभी नाचे नहीं ;
मैं बिलख चूका हूँ तुम्हारे आगे,
पर तुम कभी रोए नहीं
क्या मैं गाऊं और बिलखुं
एक ही वक़्त में ?



तुम्हारी आत्मा भूख से व्याकुल है,
और घाटी  के इन पत्थरों में
ज्ञान के फल प्रचुर हैं 
तुम्हारे ह्रदय मुरझा गए हैं प्यास से,
मगर ज़िन्दगी के झरने
तुम्हारे घरों के आस-पास ही बह रहें हैं ----
तुम अपनी प्यास क्यों नहीं बुझाते ?



समुद्र के अपने ज्वार-भाटे होते हैं,
चन्द्रमा के अपने पूनम और ग्रहण होते हैं,
समय के अपने ग्रीष्म और शिशिर होते हैं,
और हर चीज रूप बदलती है
किसी अजन्मे खुदा की परछाई की तरह
जो बहता है ज़मीन-ओ-आसमान के बीच,
पर सत्य कभी नहीं बदलता,
और ना ही वो कभी चूकता है ;
तुम क्यों  लगे हुए हो फिर
उसकी मुखाकृति बिगाड़ने में ?



मैंने  तुम्हें रात के अंधेरो में बुलाया है
चाँद की महिमा और तारों का वैभव दिखाने के लिए,
पर तुम चौंक के जाग पड़े अपनी निद्रा से
उठा ली  तुमने अपनी तलवार अनजाने  डर से,
और चिल्ला के बोले,
" कहाँ है दुश्मन ?
आओ पहले हम उसे मार गिराएँ ! "
सुबह जब दुश्मन आया
तो मैंने फिर से तुम्हें जगाया,
पर तुम नही जागे अपनी तन्द्रा से,
क्योंकि तब भी तुम डरे हुए थे
और लड़ रहें थे स्वप्नों में
अपनी ही कल्पना  के पिशाचों से.



मैं तब भी ना हारा तुमसे
और की ये इल्तजा,
" चलो हम पर्वतों के शिखरों तक चढ़ते हैं
और देखते हैं वहाँ से इस संसार के  सौंदर्य को  "
तुमने दो टुक जवाब दिया की,
" इन खाइयों की गहराईयों में
हमारे पर-पिता निवास करते थे,
और इन्ही खाइयों में  उनका मरण भी हुआ,
और फिर इन्ही गुफाओं में वो दफनाये भी गए.
हम ऐसे स्थान से कैसे कूच कर सकते हैं
जो गढ़ा है हमारे पिताओं ने ?"
मैं तब भी ना माना और बोला की,
" चलो तो हम चलते हैं मैदानों की तरफ
जो भर देते हैं अपने यश से सागरों को."
तुमने बिचकते हुए कहा की,
" सागर की अथाह गहराईयों का शोर हमारी आत्माओं को डरा देगा,
और उन गहराईयों के भय से हमारे शरीर मर जायेंगे."



मैंने तुम्हें प्यार किया है, मेरे हमवतनो,
पर मेरा प्यार मेरे लिया पीड़ा है
और तुम्हारे  लिए अनुपयोगी ;
और अब मैं तुमसे नफरत करता हूँ,
और नफरत वो बाढ़ है  
जो बहा ले जाती है सुखी टहनियों को
और कांपते घरों को.



मैंने करूणा  रखी  है तुम्हारी कमजोरियों पर,
मेरे  हमवतनो,
लेकिन मेरी करूणा ने तुम्हारी कमजोरियों को
और भी बढ़ा कर
पालन-पोषण  किया है उस आलस्य का
जो ज़िन्दगी को सख्त नागवार है
और आज जब मैं तुम्हें इस भाँती अशक्त देख रहा हूँ
तो मेरी आत्मा मुझे कचोट रही है .



मैं रोया हूँ तुम्हें अपमानित और समर्पित देख,
और मेर आंसू मोतियों तक को बहा ले गए
पर छू भी ना सके वो तुम्हारी चिरस्थायी कमजोरियों को ;
हाँ मगर,
मेरी आँखों पर पड़ा पर्दा  वो उड़ा ले गए.



मेरे आंसू तुम्हारे डरे हुए दिलों तक
कभी ना पहुँच पाए,
पर मेरे अंदरूनी  तमस को उन्होंने दूर कर दिया.
आज  मैं तुम्हारी वेदनाओं का मजाक उड़ा रहा हूँ,
क्योंकि व्यंग्य  ऐसा गुस्सैल दावानल है
जो आता है आँधियों के पहले
मगर आता नहीं आंधी के गुजर जाने के पश्चात .



क्या है तुम्हारी हसरत, मेरे हमवतनो,
क्या ये है तुम्हारी इच्छा
की  ठहरे हुए पानी में दिखाऊं मैं तुम्हें
तुम्हारी ही प्रेत सी मुखाकृति ?
तो आओ,
और देखो के कितने बदसूरत हो तुम !



देखो ! ध्यान से देखो !
भय ने तुम्हारे बालों को सफ़ेद कर दिया है
राख के ढेर की तरह,
खालीपन छा चूका है तुम्हारी आँखों पर
और बदल गया है एक अंतहीन गड्डे में,
कायरता ने कुछ इस तरह छुआ है
तुम्हारे गालों को
के पिचक गए हैं वो किसी हताश खाई  में गड्ड की तरह,
मौत ने लगता है लिया तुम्हारे
अधरों का कुछ इस तरह चुम्बन
की पीले पड़ गए हैं वो
पतझड़ के पत्तों की तरह.



क्या खोज रहें हो तुम, मेरे हमवतनो ?
क्या मांग रहें हो तुम उस  ज़िन्दगी से,
जिसने तुम्हें अपने बच्चों में शुमार करना बंद कर दिया है ?
पंडितों और तिलिस्मियों के  चंगुल  में फंस
तुम्हारी आत्माएँ ठिठुर रही हैं,
और तुम्हारा जिस्म काँप रहा है
हुक्मरानों और खून बहाने वालो के पंजो में उलझ,
और तुम्हारा मुल्क थरथरा रहा है
जुल्मी विजेताओं के पाँव तले ;
किस आशा में तुम यूँ गर्व से
सूरज की और मुख किये खड़े हो ?
तुम्हारी तलवारों पे म्यान रूपी जंग लग चूका है,
और तुम्हारे भाले टूटे पड़े हैं,
और तुम्हारी ढाल जर्जर हो चुकी है सुराखों से ;
क्यों, फिर तुम, युद्ध के मैदान में खड़े हो ?



पाखण्ड तुम्हारा धर्म है,
झूठ तुम्हारी ज़िन्दगी,
और ना कुछ होना तुम्हारी समाप्ति ;
क्यों, फिर तुम, जिंदा हो ?
क्या मृत्यु दुखियों का एकमात्र सुकून नहीं ?



जीवन एक संकल्प है
जो साथ चलता है जवानी के,
और लगन है
जो अनुगमन करती है प्रोढ़ता की,
और प्रज्ञा है
जो पीछा करती है वृद्धत्व का ;
पर तुम, मेरे हमवतनो,
पैदा ही बूढ़े और कमजोर हुए,
तुम्हारी चमड़ी पर झुर्रियां हैं
और तुम्हारे सर सिकुड़े हुए,
ऊपर से तुम बच्चे बन
एक दुसरे पर पत्थर उछालते हुए
दौड़ते हो दलदल की और



ज्ञान एक रौशनी है,
जो समृद्ध करती है ज़िन्दगी की गर्मजोशी को,
और हासिल है उन्हें जो खोजते हैं
और शामिल होना चाहते हैं ;
पर तुम, मेरे हमवतनो,
तलाशते हो अन्धकार को
और भाग  जाते हो रौशनी देख,
 और इंतजार करते रहते हो
चट्टानों से स्वतः ही पानी फूटने का,
तुम्हारे मुल्क की ये दयनीय हालत
तुम्हारा ही अपराध है...
मैं तुम्हें तुम्हारो पापों से मुक्त नहीं करूँगा,
क्योंकि तुम जानते हो की तुम क्या कर रहे हो



मानवता एक प्रतिभाशाली नदी है
जो चलती है गीत गाते हुए
और समेट के पर्वतो के गूढ़ रहस्य अपनी छाती में
एक हो जाती है समुद्र के ह्रदय  से ;
पर तुम, मेरे हमवतनो,
एक स्थिर दलदल हो
जो भरा पड़ा है
कीड़ों से और ज़हरीले नागों से



आत्मा एक पवित्र नीली मशाल है,
जो झुलसा देती है और भक्षण करती है
सूखे हुए पोधों का,
बढती है फिर वो तूफ़ान की तरह
मोहर लगते हुए
और रोशन करते हुए
देवियों के चेहरों को ;
पर तुम, मेरे हमवतनो...
तुम्हारी आत्माएँ राख की तरह है
जो बिखरा दी जाती है बर्फीले पहाड़ों पर
हवाओं के द्वारा,
और जो छितरा दी जातीं हैं
घाटियों में आँधियों द्वारा
हमेशा के लिए



तुम ना डरो मौत के पिशाच से,
मेरे हमवतनो,
की वो अपनी महानता में
और तुम्हारे बोनेपन पर तरस खा कर 
तुम्हारे निकट आना भी अस्वीकार कर देगा,
और खौफ ना खाओ तुम खंजर का,
की वो भी तुम्हारे छिछले ह्रदयों में
घर ना करना चाहेगा



मैं तुमसे नफरत करता हूँ,
मेरे हमवतनो,
क्योंकि तुम नफरत से भरे हो आनंद और प्रभुत्व  के प्रति,
मैं घृणा करता हूँ तुमसे
क्योंकि तुम तिरस्कार करते हो खुद का,
हाँ ! मैं तुम्हारा दुश्मन हूँ,
क्योंकि तुम्हें अस्वीकार है ये सत्य
की तुम दुश्मन हो देवियों के

                                          - खलील  जिब्रान


















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