सुबह जल्दी उठ जाएँगे
शरीर को नहलाएँगे
सफ़ेद कपडे पहन कर
बगुला भगत बन जायेंगे...
तिरंगा खरीद कर लाएँगे
गाड़ी पर सजाएँगे
बैठा बच्चों को फिर ट्रिपल सीट
बच्चे हम हो जाएँगे...
स्कूल-दफ्तर बन-ठन के जाएँगे
विजयी पताका लहराएँगे
लाइन तोड़ आगे निकल
होशियार हम कहलाएँगे...
वापसी में पोहा-जलेबी हम खाएँगे
खाकर पोहे, कागज़ इधर-उधर फेंक जाएँगे
चाय की चुस्कियों के बीच
देश के हाल पर चिंता हम जताएँगे...
घर आकर टीवी लाउड लगाएँगे
पड़ोसियों पर कुछ रौब जमाएँगे
गणतंत्र दिवस की परेड देख
पीक थूक खीसे निपोरते जाएँगे...
दाल-बाफले हम बनवाएँगे
डकार कर उन्हें थोड़ी देर सुस्ताएँगे
पिक्चर-पिकनिक ना जा सके तो क्या
पुरे परिवार को नकली ही सही
पर ३० रूपये में पांच फिल्म दिखलाएँगे...
शाम को महफ़िल सजाएँगे
दोस्त-यारों की सांगत हम चाहेंगे
ड्राय डे पर सरे आम पीकर
गणतंत्रता का जशन हम मनाएँगे...
देर रात घर लौट बीवी को सताएँगे
दरवाजे पर गुर्रायेंगे
थोड़ी उछल-कूद मचा कर
चादर ओढ़ सो जाएँगे...
गणतंत्र दिवस...गणतंत्र दिवस...गणतंत्र दिवस
लो जी मन गया गणतंत्र दिवस...!!!
अगली सुबह फिर काम पर जाएँगे
ऊपर-नीचे से नोट-पानी कमाएँगे
साल में दो बार बस
वन्दे मातरम् हम गाएँगे...
बाकी साल तंत्र से हम हो जाएँगे
जीवन यंत्रवत हम बिताएँगे
आईना 'मनीष' दिखलाए तो
मार दूर उसे भगाएँगे...
मिट्टी के गुण हम गाएँगे
दोहन फिर उसका करते जाएँगे
फागन को आता देख कर
रंग में भंग मिलाएँगे...
त्यौहार हर हम मनाएँगे
शान-ओ-शौकत दिखलाएँगे
असल को हम ठेंगा दिखा
नक़ल की फसलें बोते जाएँगे...
हम ऐसे ही जीते जाएँगे..........
हम ऐसे ही जीते जाएँगे..........
(गणतंत्र दिवस पर गणों के अहित में सखेद अप्रकाशित)
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