तेरे हर घर की इमारत हमने बुलंद देखी
इबादत भी देखी,
मोहब्बत भी देखी,
रंग-ओ-नूर की बरात भी देखी...
देखा-देखी की है ये बात
कहते-सुनते न किसी को देखी...
तू ही तू छाया हुआ है चहुँ ओर
तस्वीर ना तेरी कभी मगर मुकम्मल देखी...
गर्म है तेरे ही दम से तेरा ये संसार
ठंडक ना कहीं मगर तुझ सी देखी...
आग है तू मेरे चूल्हे की
बरसात ना मगर कोई तुझ सी देखी...
तू भूख भी, तू प्यास भी
तसल्ली ना मगर कोई तुझ सी देखी...
No comments:
Post a Comment
Please Feel Free To Comment....please do....