Tuesday, April 17, 2012

चुप रहना ही बेहतर है अब शायद...!!


" silence of a godly man is more violent than violence of a badly man "

तुम्हारा-हमारा
आपस में चुप रहना ही बेहतर है अब शायद...!!
क्यूंकि
तुम्हे सुनना सिर्फ तुम्हारे मन की ही है शायद...!!
और
हमें सुनाना भी तुम्हे अपने मन की ही है शायद...!!

क्या सुने मनीष तुम्हारे मन की..??
और
क्या सुनाये मनीष तुम्हे अपने मन की..??

ज़िन्दगी बस दिल्लगी दिल की
या
तिश्नगी इश्क की है शायद...!!

वो क्या ख़ाक नज़रों से पियेंगे या पिलायेंगे
जिनको आता है सिर्फ अपनी अक्ल पर  ही जताना होश है शायद...!!

फटी ही रह जायेगी ज़िन्दगी उनकी
जिनके केवल दिल में ही नहीं
नीयत में भी बसी है बस खोट ही खोट शायद...!!

ज्योतिषीयों की फिजूल बातों में आकर
सिर्फ वो ही करते हैं अपने जीवन का उपचार,
स्वीकार नहीं जीना जिन्हें पल-पल के द्वार...

सफलता और ताक़त की जरुरत तभी होती है लोगों को शायद,
जब जीवन में कुछ बुरा कर गुजरना चाहते हैं वो शायद...!!
वर्ना तो...
दुनिया में कुछ भी अच्छा कर गुजरने के लिए 
इश्क ही काफी होता है शायद...!!

गिरते रहे सजदे में हम हसरत-ए-इश्क की खातिर
अगर इबादत-ए-खुदा में गिरे होते
तो ज़िन्दगी  हमारी जन्नत हो गई होती शायद...!!

हसरत इश्क की हो सिर्फ मन में
या
इबादत खुदा की हो सिर्फ तन में
गिरा ही देती है इंसान को सजदे से
ले आती है महफ़िल-ए-जन्नत में गजब की खुमारी शायद...!!

हमारा-तुम्हारा
आपस में चुप रहना ही
बेहतर है अब शायद...!!

No comments:

Post a Comment

Please Feel Free To Comment....please do....