भारतीय दैनिक भास्कर:
रोज देखते हैं हम 'दैनिक भास्कर' समाचार पत्र को
ये दंभ भरा एलान करते हुए
की
"वो भारत का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह है"
आज तक हमने सुना या पढ़ा नहीं मगर
असल सूरज (भास्कर) को देते हुए ये बयान
क्या सूर्य महाशय अब तक अपने बड़प्पन, आकार और शक्ति से हैं अनजान..??या फिर अपनी सफलता का शान से एलान करना
सिर्फ भारतीय दैनिक भास्कर की पहचान..??
मांगी जो राय हमारी sms से
अब्दुल कलाम और अन्ना हजारे ने जब
लोकपाल और भ्रष्टाचार मुक्ति पे दिए अपने-अपने बयान
तो लिख भेजा हमने भी
की कलाम साहब एकदम सही है ये कहने में
की
जब तक हम खुद ना मुक्त होंगे भ्रष्टाचारी स्वभाव से
तब तक कैसे हो सकता है पुरे समाज का कल्याण..?
जब ना जवाब मिला दैनिक भास्कर से
ना ही छापा उन्होंने हमारा हिंदी भाषी ये कलाम
तो समझ गए हम की संसारी व्यव्सायिकता से हम शायद अनजान
तो भेजा फिर अंग्रेजी में हमने ये होकर के बे-शान;
Do you know why Anna took 72 years to demand for LOKAYUKT as first-aid for India..??
..
THINK..
..
Because
May be he innocently believed that MPs remained completely corruption free from 1947 till now
&
Now he is in so much hurry that he and his intelligent team is unable to wait for 22 years more to cure a permanent disease.
The eager mind may be wins because Anna and his team still believes that 121 crore Indian LOK are really bhrashtachaar MUKT.
It really does not matter to Anna and his team that almost daily we read in 'Dainik Bhaskar' that some LOKPAL is busy in exposing corrupt government Babus but we also know that such exposure & finding still does not stop or fear other government Babus from being corrupt...does it?
फिर २९ और ३० अप्रैल के दैनिक भास्कर में हमने
पुरे-पुरे पृष्ठ भरे देखे "माता-पिता देवो भव:" के नाम पर
इतने सारे विज्ञापन देखे हमने महान
की हमारे भीतर के कवि को लेकर संज्ञान
लिखना ही पड़ा ये
की
माता-पिता देवो भव: के विज्ञापन रोज दैनिक भास्कर में देख हमें यूँ लगा
की माता-पिता ही देव हैं अगर तो बाकी सब क्या इंसानी शैतान..?
हैं अगर शैतान सारी संताने
तो पैदा करने वाला ही फकत कैसे कहलाता है भगवान्..?
सिर्फ माता-पिता को देव समझना
ऐसा ही है जैसे
कलम को ही लेखक समझता कोई नादान
पढ़ कर ये बातें
बोले दैनिक भास्कर के प्रधान
की ऐसे ही विज्ञापनों की वजह से ही
तो हुए हैं हम धनवान..!!
सूर्य मगर उनका तर्क सुन अब तक है हैरान..!!
फिर ५ मई के दैनिक भास्कर में
पढ़ा हमने चाणक्य का ये सुविचार
"व्यक्तियों को जरुरत से ज्यादा सरल व ईमानदार नहीं होना चाहिए.
सीधे तने के पेड़ सबसे पहले काटे जाते हैं."
इस सु सु विचार पे भड़क उठा 'मनीष' का मन
और लिख बैठा वो ये जबरन
की चाणक्य जैसे दुराचारी के दूषित वचनों और नीतियों को
सिर्फ दैनिक भास्कर ही सुविचार समझ प्रचारित और प्रसारित कर सकता है...
वाह कलिनायक वाह..!!
ईमानदारी को जो सजा समझे होता ही नहीं उसमे ईमान
जहानियत को जो खुदा की खुदाई ना जाने कैसे कहें उसे इन्सान
हक़ीक़त से तड़प कर देखे जो स्वप्न जन्नत में सुकून का
नहीं देखा हमने उस से कोई नादान
सूफी अगर गिरने, कटने या मरने से डरे तो सूफी नहीं है
ऊपर-नीचे ये बड़े-छोटे के फर्क उसे हासिल नहीं है
होता है वो वहाँ जहाँ अहम् का सरोकार नहीं है
अभी ५ मई के दैनिक भास्करी सुविचार से बाहर आए ही थे
की ७ मई के दैनिक भास्करी सुविचार ने फिर करना चाहा बेडा गर्क
थियोडोर रूसवेल्ट का ये कथन छाप के
"लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित कर पाना ही सफलता का एक अति महत्वपूर्ण सूत्र है."
फिर सवाल किया हमने प्रधान संपादक से की
सफल तो निर्मल बाबा, ए. राजा, दाऊद इब्राहीम और दैनिक भास्कर भी
लोगों का सामंजस्य पाकर हुए हैं जनाब...
पर;
क्या वे कबीर, आज़ाद, रॉबिनहुड या मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे कभी सत्यवादी हुए हैं जनाब..??
कोई जवाब ना पाकर
हमने फिर अंग्रेजी में प्रश्न रूपांतरित कर पुछा की
Selfish SUCCESS of a Shah Rukh Khan is almost useless
against
Selfless SUCCESS of an Aamir Khan..??
Isn't it..??
सत्य मेव जयते
Many intellectual friends ask me to avoid noticing what Indian Dainik Bhaskar is upto and maintain my calm by remaining silent.
To such intellects I say what my guru Osho made me understand,
"Silence of an activist or an actualist is much more violent than violence of a terrorist."
&
" Choice to Choose what we want to do is always on our Soul and not on our Mind. Know that our soul is slave of our mind when we allow it to rule us."
रोज देखते हैं हम 'दैनिक भास्कर' समाचार पत्र को
ये दंभ भरा एलान करते हुए
की
"वो भारत का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह है"
आज तक हमने सुना या पढ़ा नहीं मगर
असल सूरज (भास्कर) को देते हुए ये बयान
क्या सूर्य महाशय अब तक अपने बड़प्पन, आकार और शक्ति से हैं अनजान..??या फिर अपनी सफलता का शान से एलान करना
सिर्फ भारतीय दैनिक भास्कर की पहचान..??
मांगी जो राय हमारी sms से
अब्दुल कलाम और अन्ना हजारे ने जब
लोकपाल और भ्रष्टाचार मुक्ति पे दिए अपने-अपने बयान
तो लिख भेजा हमने भी
की कलाम साहब एकदम सही है ये कहने में
की
जब तक हम खुद ना मुक्त होंगे भ्रष्टाचारी स्वभाव से
तब तक कैसे हो सकता है पुरे समाज का कल्याण..?
जब ना जवाब मिला दैनिक भास्कर से
ना ही छापा उन्होंने हमारा हिंदी भाषी ये कलाम
तो समझ गए हम की संसारी व्यव्सायिकता से हम शायद अनजान
तो भेजा फिर अंग्रेजी में हमने ये होकर के बे-शान;
Do you know why Anna took 72 years to demand for LOKAYUKT as first-aid for India..??
..
THINK..
..
Because
May be he innocently believed that MPs remained completely corruption free from 1947 till now
&
Now he is in so much hurry that he and his intelligent team is unable to wait for 22 years more to cure a permanent disease.
The eager mind may be wins because Anna and his team still believes that 121 crore Indian LOK are really bhrashtachaar MUKT.
It really does not matter to Anna and his team that almost daily we read in 'Dainik Bhaskar' that some LOKPAL is busy in exposing corrupt government Babus but we also know that such exposure & finding still does not stop or fear other government Babus from being corrupt...does it?
फिर २९ और ३० अप्रैल के दैनिक भास्कर में हमने
पुरे-पुरे पृष्ठ भरे देखे "माता-पिता देवो भव:" के नाम पर
इतने सारे विज्ञापन देखे हमने महान
की हमारे भीतर के कवि को लेकर संज्ञान
लिखना ही पड़ा ये
की
माता-पिता देवो भव: के विज्ञापन रोज दैनिक भास्कर में देख हमें यूँ लगा
की माता-पिता ही देव हैं अगर तो बाकी सब क्या इंसानी शैतान..?
हैं अगर शैतान सारी संताने
तो पैदा करने वाला ही फकत कैसे कहलाता है भगवान्..?
सिर्फ माता-पिता को देव समझना
ऐसा ही है जैसे
कलम को ही लेखक समझता कोई नादान
पढ़ कर ये बातें
बोले दैनिक भास्कर के प्रधान
की ऐसे ही विज्ञापनों की वजह से ही
तो हुए हैं हम धनवान..!!
सूर्य मगर उनका तर्क सुन अब तक है हैरान..!!
फिर ५ मई के दैनिक भास्कर में
पढ़ा हमने चाणक्य का ये सुविचार
"व्यक्तियों को जरुरत से ज्यादा सरल व ईमानदार नहीं होना चाहिए.
सीधे तने के पेड़ सबसे पहले काटे जाते हैं."
इस सु सु विचार पे भड़क उठा 'मनीष' का मन
और लिख बैठा वो ये जबरन
की चाणक्य जैसे दुराचारी के दूषित वचनों और नीतियों को
सिर्फ दैनिक भास्कर ही सुविचार समझ प्रचारित और प्रसारित कर सकता है...
वाह कलिनायक वाह..!!
ईमानदारी को जो सजा समझे होता ही नहीं उसमे ईमान
जहानियत को जो खुदा की खुदाई ना जाने कैसे कहें उसे इन्सान
हक़ीक़त से तड़प कर देखे जो स्वप्न जन्नत में सुकून का
नहीं देखा हमने उस से कोई नादान
सूफी अगर गिरने, कटने या मरने से डरे तो सूफी नहीं है
ऊपर-नीचे ये बड़े-छोटे के फर्क उसे हासिल नहीं है
होता है वो वहाँ जहाँ अहम् का सरोकार नहीं है
अभी ५ मई के दैनिक भास्करी सुविचार से बाहर आए ही थे
की ७ मई के दैनिक भास्करी सुविचार ने फिर करना चाहा बेडा गर्क
थियोडोर रूसवेल्ट का ये कथन छाप के
"लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित कर पाना ही सफलता का एक अति महत्वपूर्ण सूत्र है."
फिर सवाल किया हमने प्रधान संपादक से की
सफल तो निर्मल बाबा, ए. राजा, दाऊद इब्राहीम और दैनिक भास्कर भी
लोगों का सामंजस्य पाकर हुए हैं जनाब...
पर;
क्या वे कबीर, आज़ाद, रॉबिनहुड या मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे कभी सत्यवादी हुए हैं जनाब..??
कोई जवाब ना पाकर
हमने फिर अंग्रेजी में प्रश्न रूपांतरित कर पुछा की
Selfish SUCCESS of a Shah Rukh Khan is almost useless
against
Selfless SUCCESS of an Aamir Khan..??
Isn't it..??
सत्य मेव जयते
Many intellectual friends ask me to avoid noticing what Indian Dainik Bhaskar is upto and maintain my calm by remaining silent.
To such intellects I say what my guru Osho made me understand,
"Silence of an activist or an actualist is much more violent than violence of a terrorist."
&
" Choice to Choose what we want to do is always on our Soul and not on our Mind. Know that our soul is slave of our mind when we allow it to rule us."
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