वो समझते हैं की बड़े सुकून से सोते हैं हम रात भर,
नहीं जानते वो नादान
की हक़ीक़तन तो हम जाग-जागकर जीते हैं ख़्वाबों को उम्र भर
ये नींदें हैं आशाओं पर दृढ़ विश्वास की,
दीवानगी जिसकी शास्वत सनातन सतनाम मोहब्बत से है
भोला बादशाह कहकर पुकारती है एक नन्ही सी मासूम परी मुझे,
देखकर जिसे मेरी सारी की सारी मक्कारी रह जाती है धरी की धरी
महज एक सोज़ उसका बना देता है दीवाना मुझे,
अक्ल पे तो लग जाती है जैसे इश्क़ की झड़ी
तू तू मैं मैं को ख़त्म हुए हुआ जाता है एक अरसा,
वो नदी एक हुई जबसे बन के सागर की अनगिनत समुद्र लहरी
चढ़ा जबसे रंग उसका सूरज ठेकेदार पे,
रोम-रोम पुकारे है हरी ॐ हरी, हरी ॐ हरी, हरी ॐ हरी.............
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