Thanks to my sms, whattsapp friends and also to Javed Akhtar Saheb who personally shared this sher-o-shaayari with me. I'm taking undue risk with ishq thinking that you'll be able to not only comprehend it but also find your mind capable enough to digest the ingredients within. Inshaallah - God bless you ;-)
अब किससे जाकर पूछें मंज़िल किधर गयी
बाज़ार में जा पूछा, इंसानियत मिलेगी?
सब ने हँसते हुए कहा, वो तो कब के मर गयी
दिन में धुप तपे, रात में चाँदनी
कैसी ये ज़िन्दगी, सुबह-ओ-शाम अनबनी
बदलना चाहते हो तो शौक से बदलो पर इतना याद रखना…
जो हम बदले ओ करवटें बदलती रह जाओगी
बात ये नहीं है की तेरे बिना जी नहीं सकते;
बात ये है की तेरे बिना जीना नहीं चाहते
तजुर्बों ने हमें खामोश रहना सिखाया..
कुत्ते भोंकते हैं अपने ज़िंदा होने का एहसास दिलाने के लिए …
मगर
जंगल का सन्नाटा शेर की मौजूदगी बयाँ करता है
उसे भूलना होता तो कब का भुला देता
वो मेरी रूह-ए-मोहब्बत है, कोई तमाशा नहीं
तुझ बिन रात गुजरती ही नहीं.......
वक़्त की आँख लग गयी हो जैसे
टाइम ना कर अपना खराब अपना ए ग़ालिब, जमकर पी ले
लिवर तो ट्रांसप्लांट हो जायेगा पर बीता हुआ वक़्त तू कहाँ से लाएगा
समेट लो सितारों को अपने हाथों में
बहुत देर तक रात ही रात रहेगी
मुसाफिर हैं हम भी
मुसाफिर हो तुम भी
कहीं ना कहीं तो मुलाक़ात जरूर होकर रहेगी
बुलंदी की उड़ान पर हो तो ज़रा सबर रखो,
परिंदे बताते हैं की …… आसमान में ठिकाने नहीं होते ....
किसी टूटे हुए मकान की तरह हो गया है ये दिल,
कोई रहता भी नहीं और कमबख्त बिकता भी नहीं
हम तौर-ए-इश्क़ से तो वाकिफ नहीं लेकिन,
सीने में है एक दिल जो मला करे है कोई
तेरी ख़ुशी से अगर गम में भी ख़ुशी ना हुई,
वो ज़िन्दगी तो मोहब्बत की ज़िन्दगी ना हुई
मियाँ वो दिन गए, अब ये हिमाक़त (नासमझि, बेवकूफी) कौन करता है
वो क्या कहते हैं उसको.... हाँ - मोहब्बत - मोहब्बत अब कौन करता है
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