ज़िंदगी भर तो हुई गुफ़्तुगू ग़ैरों से मगर
आज तक हम से हमारी न मुलाक़ात हुई
- गोपालदास नीरज
मुलाक़ात हुई जो ख़ुद से तो ये जाना कि;
काम मेरा जन्मदाता,
क्रोध मेरा सहभागी,
कामुक और क्रोधी मैं,
वेग भी मैं, सहनशील भी मैं,
सामर्थ्य मैं, जय-पराजय मैं,
मनस्वी भी मैं, शरीर भी मैं, आत्मा भी मैं,
दुःख भी मैं, सुख भी मैं,
योगी भी मैं, जोगी भी मैं, भोगी भी मैं ही,
द्वैत भी मैं, अद्वैत भी मैं ही..
जाने किस-किस से जीतने की इच्छा पाले बैठा है मेरा ये अद्वितीय मैं..??
~ दीवाना वारसी