Thursday, September 24, 2009
Osho..
ओशो...,
ना कभी तुम्हे देखा, ना मुलाक़ात हुई, ना कोई पहचान,
चित्रों में ही बस देखा किया, नयन तुम्हारे तीर-बाण...
सुना गज़ब तुम्हारा जलवा, शब्दों की अजब ही शान,
पढना-सुनना जो शुरू किया, हुई महसूस मतवारी तान...
दिल ने कहा हो तुम्ही वो सखा, था जिससे में अब तक अनजान,
तंत्र तुम्हे और करीब लाया, शुक्र तेरा विज्ञान...
अब न वो में हूँ, न वो तुम हो, जैसे दो जिस्म हों एक जान,
अंधियारा सारा मिट गया, तज गया सब ज्ञान..
The name is enough to describe me.
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nice one:)
ReplyDeletefor the master who breathes our essence....
may lords grace alwaz be around you...