मन इच्छाओं से है भरा,
आँखें देखती है केवल त्वरा,
जुबां मांगे है सफलता ज़रा,
नाक पर बैठा है दंभ खरा,
स्पर्श देता है मुझको डरा,
कानो में ठूंस रुई मैं की,
कहता हूँ सबसे हैप्पी दशहरा,
पर सच कहूँ...
अभी रावण नहीं है मरा...............
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यह रचना मुझे अच्छी लगी। उत्तम तो हर रचना होती है, पसंद के ऊपर है किसे क्या कब अच्छा लगे।
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ दिल से निकली हुई हैं इसीलिए दिल तक पहुँचती हैं - सीधे।