Monday, May 31, 2010

कवी सम्मलेन

उस दिन में यूँ ही..
एक कवी सम्मलेन सुनने चला गया,
सुनने को तो वहाँ कुछ ख़ास था नहीं,
पर वहाँ का नज़ारा देख बस मजा आ गया
कुछ मत पूछिए !
बस यूँ जानिये की मजा आ गया......!


कवी सम्मलेन तो वो कम था..
एक-दुसरे की पीठ खुजलाने का कार्यक्रम ज्यादा था,
हर कोई बड़ी अदा से एक-दुसरे के अहंकार को सहला रहा था,
 और भाई ! किसी को आया हो या ना आया हो,
पर हमको तो सबकुछ साफ़ नज़र आ रहा था......!

कविगण आते..
और सबसे पहले मेरे शहर की तारीफ़ में कसीदे पढ़े जाते,
और हम उज्जैन के श्रोता, 
आश्चर्य से एक-दुसरे की आँखों में तकते रह जाते,
की अरे बाबा उज्जैन इतना महान है....?? 
तो हम क्यों इतने हैरान-परेशान हैं.......!

फिर वो कविगण अपनी वाली पर आ जाते..
और अपनी दिमाग की उलझने हमें सुनाते जाते,
( जैसे के मैं  सुना रहा हूँ......!!)
बदले में हमसे तालियों की भीख भी मांगते जाते,
अरे भाई ! कोई उन्हें बताये,
की तालियाँ हाथों से नहीं दिल से निकलती हैं,
और फिर वैसे भी भैय्या !
 क्या एक भिखारी को दुसरे भिखारी से कभी भीख मिलती है.....??

अफ़सोस..
की यही भिखारीपन मुआ ! 
अब ब्लॉग्गिंग की दुनियाँ में भी अपना असर जमा रहा है,
 क्या कहें की हमको तो खुदा कसम बहुत रोना आ रहा है.......

पर मियाँ...!!
आप क्यूँ इतना खिलखिला के हँस रहे हैं....??
कसम से कह रिया हूँ रोना पड़ेगा जल्द ही...
 

Thursday, May 20, 2010

शहादत

तुझ पर ही ख़त्म

सारी काएनात होगी

फिर ना कभी

अब ये ज़लालत होगी....



करेंगे ज़िक्र अबके

कुछ इस अदा से तेरा

ना तुझे ज़हमत होगी

ना ज़माने को शिकायत होगी....



खुद से ही किया करेंगे बातें

होंगे जब तुझसे रु-ब-रु

अलहदा समझने की तुझको

अबके ना हमसे हिमाक़त होगी....



ग़म हो या हो ख़ुशी

बनाये रखेंगे एक-सी दुरी

एक के नाम पर अबके

ना दुसरे की शहादत होगी....



Saturday, May 8, 2010

सोच सोच की बात है...

तुम्हारी समझदारी में वो समझ नहीं

जो दीवानगी मेरे दीवानेपन में है

कामयाबी तुम्हारी उस तरह नहीं दमकती

चमकती जिस अदा से मेरी मुफलिसी है...




तुम्हारी ज़िन्दगी ज़िन्दगी

और हमारी ज़िन्दगी दोज़ख..!!

सोचता हूँ दर्द से

मेरी कोई अय्यारी तो नहीं..??



तुम करो तो मोहब्बत

हम करें तो हवस..!!

जिस्म तुम पर कुछ

जियादा ही भारी तो नहीं..??



तुम्हारी मन्नतें लाज़मी

और हमारी दुआएं खाली..!!

मांगने से ही

अल्लाह को कोई दुश्वारी तो नहीं..??



जमा किये जाते हो

जो यूँ तुम सारी दौलतें..!!

मौत को दगा दे जाने की

बाखुदा कोई तैय्यारी तो नहीं..??



गाफ़िल हैं दिन-रात

जो तरक्की के ख्यालों में..!!

तसल्ली ये हमारी

कोई बिमारी तो नहीं..??



सब कुछ हासिल करके

कैसा ये सूनापन..!!

ज़िन्दगी कमबख्त

कर गई कोई गद्दारी तो नहीं..??



देख अपना जनाज़ा

कल बोल उठे 'मनीष'..!!

बाकी रह गई दिल में

तमन्नाओं की कोई गुनाहगारी तो नहीं..??