उस दिन में यूँ ही..
एक कवी सम्मलेन सुनने चला गया,
सुनने को तो वहाँ कुछ ख़ास था नहीं,
पर वहाँ का नज़ारा देख बस मजा आ गया
कुछ मत पूछिए !
बस यूँ जानिये की मजा आ गया......!
कवी सम्मलेन तो वो कम था..
एक-दुसरे की पीठ खुजलाने का कार्यक्रम ज्यादा था,
हर कोई बड़ी अदा से एक-दुसरे के अहंकार को सहला रहा था,
और भाई ! किसी को आया हो या ना आया हो,
पर हमको तो सबकुछ साफ़ नज़र आ रहा था......!
कविगण आते..
और सबसे पहले मेरे शहर की तारीफ़ में कसीदे पढ़े जाते,
और हम उज्जैन के श्रोता,
आश्चर्य से एक-दुसरे की आँखों में तकते रह जाते,
की अरे बाबा उज्जैन इतना महान है....??
तो हम क्यों इतने हैरान-परेशान हैं.......!
फिर वो कविगण अपनी वाली पर आ जाते..
और अपनी दिमाग की उलझने हमें सुनाते जाते,
( जैसे के मैं सुना रहा हूँ......!!)
बदले में हमसे तालियों की भीख भी मांगते जाते,
अरे भाई ! कोई उन्हें बताये,
की तालियाँ हाथों से नहीं दिल से निकलती हैं,
और फिर वैसे भी भैय्या !
क्या एक भिखारी को दुसरे भिखारी से कभी भीख मिलती है.....??
अफ़सोस..
की यही भिखारीपन मुआ !
अब ब्लॉग्गिंग की दुनियाँ में भी अपना असर जमा रहा है,
क्या कहें की हमको तो खुदा कसम बहुत रोना आ रहा है.......
पर मियाँ...!!
आप क्यूँ इतना खिलखिला के हँस रहे हैं....??
कसम से कह रिया हूँ रोना पड़ेगा जल्द ही...
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baap re ...kise rona hai? achhi rachna, achhe kataksh
ReplyDeleteidhar bhi na jyadatar kavi hi hei....blogging ki duniya mei
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