कल रात..
कल रात एक और ख्वाब का खून हुआ
एक अरमान और दफन हुआ
एक और उम्मीद ने साथ छोड़ा...
ना दिल टूटने की कोई आवाज़ हुई
ना कोई आंसू गिरा
और ना ही मौत ने गले लगाया
ख्वाब ही तो था...
नहीं जानता था
सुबह इतनी जल्द हो जाएगी
हकीकत यूँ
मुहँ-बाएं खड़ी नज़र आएगी
इश्क की बस
दास्तान ही रह जायेगी...
चलो...
जब आँख खुली तब ही सवेरा
किसी तरह तो दूर हुआ अँधेरा
शुक्रिया ए दोस्त...
की दिखाया तुने मुझे मेरा असली चेहरा
मिलवाया उस से जो असल मैं है मेरा..!!
फिर वो इश्क नहीं
जो एक लम्हे को भी दर्दनशीं हो जाए
हमने तो ये जाना की
इश्क हर लम्हे को बंदगी कर जाए
दर्द हो या हो फिर सुकून
इश्क सभी को
एक
सा अपनाए..!!
ज़मीनी हकीकत भुला
लगे थे हम
आसमान छु लेने की कवायद में
कैसे भला जीते वो ज़िन्दगी
जो ख़ुशी और ग़म के पार है..!!
तकदीर बदलना
चाहते थे हम
तदबीर के दम पर
कैसे क्या मुस्कुराते वो मुस्कान
जो आती है सर के कट जाने के बाद..!!
इश्क वो दर्द है
जिसकी ना कोई दवा ना दारु
एक तीर है जो दिल के पार है
पर ना तो कोई ज़ख्म ना कोई बीमारू
देवदास सारे टुन्न यहाँ
की मिली नहीं पारो
मीरा लेकिन महज एक मूरत पे
ये वारूँ वो वारूँ..!!
रंग-रूप के चक्कर में मत पड़ ज़ालिम
रंग-रूप भटकाता है
(ऊपर की दो पंक्तिया साभार श्री यशवंत मेहता से उधार ली हैं)
(ऊपर की दो पंक्तिया साभार श्री यशवंत मेहता से उधार ली हैं)
भटक-भटक कर ही लेकिन आदिम
लौट फिर घर को आता है..!!
किसी में महबूब जो नज़र आए
तो जान लेता हूँ की
इंसान हुआ, शायद..!!
लोग चोट पहुंचाए तो
महबूब को पुकार लेता हूँ, शायद..!!
महबूब को पुकार लेता हूँ, शायद..!!
पर जब
महबूब ही दर्द देता लगे
तो जान लेता हूँ की
इबादत मेरी कमज़ोर है अभी...
बहरहाल..,
हर सूँ, और हर शय
जब हो जाए महबूब
तो जानने वाला भी कहाँ बच रहेगा...?
खो जाता हूँ
खो जाता हूँ
बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
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