Saturday, February 12, 2011

पत्थर-दिल



मुझ पत्थर-दिल को ताउम्र ये मुश्किल रही,
दिल हमेशा मेरा भारी-भारी ही रहा..!!

हल्का करना चाह जब भी मैंने दिल को,
बातें मेरी सबको वजनी ही लगीं..!!

दिल मेरा यूँ एक रोज में हुआ ना पत्थर,
सख्तियाँ तमाम उसपर ज़माने की हुईं..!!

संगीन ये हालात और मजबूत कर गए बुत को,
दुशवारियाँ टूटे दिल की फिर हमको ना हुईं..!!

वक़्त जनाजे के बेदम हुए लोगों ने कहा,
शुक्र "मनीष" से यारानियाँ ना हुईं..!!
 
 
 
Man is  bad case....isnt it?

3 comments:

  1. बहोत प्यारा लिखा है आपने..

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  2. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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  3. फुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |

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