Monday, June 27, 2011



Ashlesha - a brilliant student, Megha - a house wife and Rohini - Ashlesha's grandmom were found brutally murdered in their flat at Indore. The triple murder took place at about 4 - 4.30 pm in the evening. The purpose of the crime was to loot
the Deshpande's but when the Deshpande's didn't give in, they were murdered.




Neha Verma, an ambitious girl and her lover Rahul alias Govinda were in search of an easy target to lead a happy, prosperous and successful life. Manoj - Rahul's friend was their partner in crime.

Neha was the mastermind behind the crime. She gained access with Mrs Megha Deshpande under the pretext of wanting to be a Oriflame buisness associate after seeing her wearing expensive jewellery and leading a comfortable life.

The police is still investigating the case but the facts of this triple murder case can be easily accessed from dainik bhaskar or any other regional newspaper of Madhya Pradesh.

Penned below is the outrage of a man who knows not what else to do on seeing regular degradation of humanity, consistent downfall of human values and pathetic shamelessness of society in general :



इन हसीनाओं को...


बला का हुस्न बक्शा है कुदरत ने
इन हसीनाओं को
शबाब ही नहीं शराब से भी नवाजा गया है
इन हसीनाओं को
'उसने' तो 
दिल ही दिल बनाया था इन्हें
जाने कौन मनहूस घड़ी लग गया अक्ल का चस्का
इन हसीनाओं को...

जानता हूँ 
बाबा आदम के ज़माने में
चखा थे इल्म का एक सेब हव्वा ने
जरुरी नहीं मगर 
इस बोझ को सर पे उठाये रखना
हाय मगर !
 कौन ये राज खोलने की हिमाकत कर सकता है 'आज'
इन हसीनाओं को...

गेसुओं का बाँकपन
मिला था दिल धड़काने को
उलझाना इनमें जाने किसने सिखाया है 
इन हसीनाओं को...

ललाट था जो लाली से भरा-भरा कभी
आज उतर आया है खून इसमें
माथा ठनकते ही देखो तो
दे गया कैसी नामुराद सलवटें
इन हसीनाओं को...

मटकती ये आँखें, मदभरे ये नैन
आज भी ठहरा देती है साँसों को
उठाती हैं जो अब यें तीर-ओ-तलवार
क्या चंचल चितवन काफ़ी नहीं थी 
इन हसीनाओं को...?

सूंघ ले जो बदनियतों को दूर से ही
कुछ ऐसे बक्शे गए हैं नाक-नक्श इन्हें 
इतना नाकवाला 
फिर किसने है बनाया
इन हसीनाओं को...?

लब जैसे गुलाब की हैं पंखुड़ियाँ
मोतियों से तीसपे दन्त 
और  
काँटो सी तीखी जुबां भी
 है इन्हें मुहैय्या
कातिलाना तो खैर थी हीं
पर कातिल किसने बनाया
इन हसीनाओं को...?

सुराहीदार ये गर्दन
थी कभी गाफ़िल हर कंठ की प्यास बुझाने में
अकड़ी कुछ इस तरह मगरुरी में
के बुत बना रख छोड़ा है 'आज'
इन हसीनाओं को...

नाजुक ये कंधे
कभी बने ही नहीं थे
दुनिया का बोझ उठाने को
जाने किसने दे दिया मगर
ये तख़्त-ओ-ताज का जूनून
इन हसीनाओं को...

ये गुदाज बदन, ये मरमरी बाहें
और ये तराशा हुआ जिस्म
सबकुछ तो था नसीब
मलिका-ए-जहाँ बनने के लिए
दिल ही मगर बैठा जाता है अब आशिकों का 
देखकर इन गुस्सैल हसीनाओं को...

सिसकती है जो आज छुप-छुपकर
अपनी ही महत्वाकांक्षाओं की आग में
नेहाओं की इस नेहा से अब कौन बचाएगा
इन हसीनाओं को...

जाने कब गले उतरेगा 
इन हसीनाओं के दिल में
ये अदना सा सच
के यूँ पौरुषीय हो जाना 
बिलकुल भी शोभा नहीं देता
इन हसीनाओं को...

अश्लेशा तेरा अवशेषों की
मेघा तेरे मेघों की
और
रोहिणी तेरे ग्रहण की
कसम है हमें
करेंगे ना सिर्फ इल्तज़ा ज़िन्दगी से
बल्कि करम भी कुछ ऐसे इस ज़िन्दगी में
की
नाज़-ओ-अदा से सीखा दे कोई कृष्ण  
वो मीरा वाला पाक-साफ़ इश्क का सबक फिर एक बार 
इन हसीनाओं को...

फिर रोशन कर ज़हर दा  प्याला
चमका नई सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को 
ताबानी दे मौला !!
फिर मूरत से बाहर आकर 
चारों और बिखर जा  
फिर मंदिर को कोई मीरा 
दीवानी दे मौला !!

दीवानी दे मौला !! 




Man is bad case....isnt it?

Friday, June 24, 2011

WOMEN LOVE DOGS

http://youtu.be/qK3pUwC2QGw

Click the link above to listen & watch the "Kutta सोंग" from Bollywood flick - प्यार का पंचनामा


मैं " पति " हूँ
का ख्याल
है उनपर कुछ इस कदर भारी
चाहते हैं वो मुझसे "कुत्तों" सी वफादारी...!!!

शादी शुदा हूँ तो क्या हुआ
हूँ तो इंसान ही
अब कहाँ से लाऊं में ये दूम हिलाने की समझदारी...!!!

लुत्फ़ ये..,

के पुछा जो मैंने इन कुत्तों से
की क्या है बे तुम्हारी इस बेपनाह वफादारी का सबब
तो वो जोर से भोंक कहने लगे
की ये तो है बस पापी पेट की लाचारी...!!!

वर्ना तो..,

हम कुत्तों के समाज में होती ही नहीं भैय्या  
ये शादी की खुजली वाली बिमारी...!!! 

एक ज़माना  हुआ
इंसान को दूम से जुदा हुए
अबकी तो लगता है
आ गई  है सर कटाने की बारी...!!!

वफ़ा को होती है
एक अदद मालिक की दरकार
इश्क ही जब याँ मालिक
तो फिर भला
 बेवफाई है किसकी जिम्मेदारी...!!!

वफ़ा गर बँट जाए हिस्सों में
तो वफ़ा ना रहे
इश्कां मगर रखते यहाँ
खुद को बाखुदा कलम कर लेने की तैयारी...!!!

वफ़ा और इश्क के
सबके अपने-अपने अलग और जुदा माईने हैं जनाब
इधर वफ़ा इश्क से है
तो
उधर वफ़ा से इश्क की बिमारी...!!!


Man is bad case....isnt it?

Sunday, June 19, 2011

POSTMARTEM

कहते हैं वो
की
बाल की खाल निकालते हैं 'मनीष'
कहते हैं हम
की
क्या करें - पेशे से कसाई जो ठहरे
फर्क सिर्फ इतना
की
वो जान निकाल लेता है
और
हम ज्ञान...!!!

Listed below are select examples of how the postmartem of forwarded messages, currently doing the rounds in the mobile circuit, is done. The postmartem appears to be heartless but in fact, it is done to gain an insight as to how cunningly our mind works. The messages in RED are the one sent by people who are in total unanimity with their minds while the ones in BLUE come straight from the heart or a No Mind state.

Enjoy reading them but do not forget to learn a trick or two to identify yourself seperate from your thought process.
Read mindfully to get the meaning but then step out to read your own mind.
Allow your heart to rule your self.

A little water evaporates with the Sun heat,
But,
Oceans never go dry...
Limited responsibility tires you...
But,
Unlimited responsibility empowers you...

Response:

It is this little evaporation of the Ocean by the Sun that keeps on empoearing the Ocean with gallons of River water.
Man,
but
fears evaporation and hence dries up.

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True Quote :
If silence is considered to be the best for all situations..!!
Then,
Why do we all get so hurt whenpeople don't talk to us..!!

Response :

Slavery, either of the spoken word or to the silence,
is
but a slavery...
Freedom is Bliss.

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मैंने अपने दिल से पुछा:
"प्यार और दोस्ती में क्या फर्क है..??"
आवाज़ आई...,
"मेरा काम blood  supply  करने का है,
ये छिछोरी बातें मुझसे न किया कर."

Response:

जब भी सवाल किया धड़कते हुए दिल से,
जवाब मन ने ही दिया...,

तसल्ली से
खामोश बैठ
सुन पाते कभी धडकनों की भी ज़ुबान,
ये हुनर कभी तराशा ही नहीं..!!

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"Peace of mind can be attained very easily if we just LET GO 3 C's of
CRITICISING OTHERS
COMPARING WITH OTHERS
&
COMPLAINING ABOUT OTHERS...."

Response:

Very TRUE...
But,
Would you not CRITICISE a thief for his indulgence in theft...??
Would you not COMPARE to distinguish between a rose & a thorn...??
&
Would you not COMPLAIN against the atrocities of a criminal mind...??
It ain't about LETTING GO something
but
about ACCEPTING everything equanomously as it comes
&
then choosing to act as per the demand of the situation.
The catch is that one has to be alive & awake to each & every moment of the day to be able to take an informed choice.

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Negative thinking is as important as positive thinking
Coz
If positive thinking invents an aeroplane
then
Negative thinking invents parachute.

Response:

True again...
But then a terrorist can make a mockery of the positive invention of an aeroplane..
while
a fearful negative mind can make a mockery of the life saving parachute by pressing wrong buttons..
Because a parachute can save life - it is a positive invention done keeping the negative fallout in mind..
&
Because an aeroplane can kill - it is a negative invention done with positive frame of mind..
ALL in ALL 
           " बन्दर के हाथ में उस्तरा देने के परिणाम कुछ भी हो सकते हैं "

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वो नसीब थी मेरी
जो मुझसे खफा हो गई
दूर मुझसे न जाने क्यूँ
बेवफा हो गई
इंतज़ार है उसके पैगाम का
पता तो चले वो किस पर फ़िदा हो गई.......???

Response:

वफाओं-जफ़ाओं पर यूँ मरने वाले
कभी इश्कां न हो सके
उलझे रहे जिस्मों में
रूहां न हो सके
आज़ादी को समझा किये वो मौत
पंछी ये आकाश के
कभी शम्मा के परवाने न हो सके.........!!

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THOUGHT FOR THE DAY :

Never allow someone to be your priority while allowing yourself to be their option.

Response:

People never are a priority or an option for true lovers ; love is.


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Life is better WHEN you are happy
Life is at its best WHEN others are happy bcoz of you
Be inspired
&
share your smile with everyone.

Response:

A life full of bliss is never dependent on IF's, WHEN's and BUT's.

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विष भरा अमृत घटाओं में
है जलन सी छाँव में
फिर वफ़ा ने मात खाई
बेवफा के गाँव में
चल रहे थे साथ दोनों
रहगुज़र भी एक थी
अब अकेले ही खड़े हैं
ज़ख्म लेकर पाँव में....

Response:


हम रहते हैं वहाँ
जहाँ कोई आता-जाता नहीं...
ना कोई विचार
ना कोई सवाल
ना कोई जवाब
बस..एक खूबसूरत सा एहसास है
की
जो भी इस दुनिया में है
वो प्यार का ही रूप है
और
प्रेमी करते हैं
प्यार का हर रंग स्वीकार...
चाहे धुप हो या छाँव
चाहे पिहू की पियु-पियु हो
या हो कौव्वे की काँव-काँव...

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Wednesday, June 8, 2011

ना

ना मंजिल है
ना मुश्किल है कोई ज़िन्दगी में.....
ना हम होते हैं
ना तुम होते हो कोई बन्दगी में.....
बस एक ज़िन्दगी है
जो भरी हुई है बन्दगी से.....
दर्द और ख़ुशी
के पार भी है एक जहाँ..,
ना मनवा है
ना मानव है कोई वहाँ ज़िन्दगी में.....
बस तारी है
एक एकात्मकता का एहसास इस द्वन्दगी में....
जैसे;
खिल आया हो कोई कमल गन्दगी में....
जैसे;
गाए कोई मल्हार तिश्नगी से.....
जैसे;
लिपटा कोई भुजंग सन्दगी से.....
जैसे;
मस्त कोई मलंग अपनी कलन्दगी में....
जैसे;
करे मनीषी होश रिन्दगी में.....
जैसे;
करे कोई मजाक सन्जीदगी से....
जैसे;
खेले 'मनीष' ये खेल खिलन्दगी से.....


Monday, June 6, 2011

कौन हूँ मैं...???

कौन हूँ मैं...???

" मैं " वाकई में कुछ भी नहीं...,
यह " कुछ भी नहीं " का एहसास क्या है मगर..!!
कुछ तो है........
जो
ना-कुछ और सब-कुछ के ठीक बीचों-बीच है...
लगता है ये ना-कुछ ही सब-कुछ हुआ है
कुछ ना कुछ हो कर...

ये माना की मैं कुछ भी नहीं..,
पर यह भी तो हो सकता है
की
मैं ही सब-कुछ बन गया हूँ
ना-कुछ बन कर..!!

मस्त रहना चाहता हूँ मैं
ज़िन्दगी की हर जंग में..,
डूबे रहना चाहत हूँ मैं
इश्क के हर रंग में..,
क्या करें मगर..
की
जीने का ये अंदाज़ जिन्हें नहीं बर्दाश्त
ढाल लेना चाहते हैं वो मुझे
अपने ही ढंग में....

कोई समझाए उन्हें की हम बताएँ क्या
की...,

तंग नहीं है इस क़ाएनात में कहीं भी कुछ भी...
ज़िन्दगी की हर अदा यहाँ निराली है...
कुछ भी तयशुदा नहीं यहाँ
और फिर भी इतना तो तय है
की...
उसे समझ लेने का दम भरना
एक प्रकार की गाली है...

बस...
इतना ही कहिये जनाब
की...,
गज़ब यहाँ उसकी हर अदाकारी है...

जैसे ;

दूरियां ख़त्म करना चाहो
तो ख़त्म हो जातीं हैं नजदीकियां भी,
सुख ही सुख चुनना चाहो
तो हासिल होते हैं दुःख भी,
ठीक उसी तरह ;
जैसे जन्म ले आता है मौत अपने संग में...

नहीं...नहीं जनाब...!!
हम पे यूँ तोहमत ना लगाइए
बस,
थोड़ा अपने-आप पे गौर फरमाइए...

ये अल्फाज़ जो निकल रहें हैं दिल से
ये कोई ताकीद नहीं
और
ना ही कोई नसीहत है
ना ही कोई फरेब है इनमें
और
ना ही कोई हक़ीक़त है इनमे  
बस...
छाया है उसकी...
जो ढलता...,
या शायद ढलती...,
या शायद दोनों ही..,
या शायद कुछ नहीं...,
या शायद सब-कुछ....,
पता नहीं.......
बस इतना ही जानूँ
की
ढले ही नहीं वो किसी भी रंग में......
हाँ...ये बात और
की
हम ढल सकते हैं उसके ही रंग में.........

दूसरों को उसके रंग में ढालने का
कोई ठेका भी नहीं ले रखा है हमने...
की
यहाँ कोई दूसरा है ही नहीं
- सिवाय उसके.....

ना ही हम कोई चालबाज़ राजनीतिज्ञ
और ना ही हम कोई गुरु-घंटाल हैं...
जो भीख मांगे वोट की सम्मान की गरज से
या मांगे आस्था कुछ पाने की लरज से...
की
यहाँ कोई सम्मान योग्य है ही नहीं
- सिवाय उसके.....
और ना ही कुछ पाने योग्य है
- सिवाय उसके.....

और ये भी
की

ना ही दूसरों को ज्ञान-ख़ुशी-प्रेम बाँट
उन्हें अपना गुलाम बनाने में हमें कोई लुत्फ़ है...
की
यहाँ ना कोई ज़ाहिर ना बातिम ना ग़ालिबन लुत्फ़ है
- सिवाय उसके.....

दूसरों से character certificate वो मांगे
जिसका अंतस में character ढीला है...
की
यहाँ कोई character है ही नहीं
- सिवाय उसके.....

तो

फिर ये हंगामा क्यूँ मचा रखा है 'मनीष'.....??
क्यूँ ये बेसिर-पैर की शेर-ओ-शायरी.....??
क्या ये है कोई लाचारी......??
या फिर है ये कोई लाईलाज बिमारी......??
तो
जवाब ये है मियाँ
की
पता नहीं.......

पता नहीं क्या है ये...
पर बड़ी मस्ती है इस रंग में
आ जा, डूब जा तू भी मेरे संग में...


हाय...मैं मर जांवा तेरी इस हँसी पे
हाय...मैं कुर्बान तेरी हर ख़ुशी पे
आँखें नम हैं देख ये मस्तियाँ
हाय...मैं निसार अपनी ही बेख़ुदी पे...
बस इतना समझ लीजिये

की...

वक़्त ही मेरा पता देने लगा है अब तो
सफ़र ही मंज़िल का मजा देने लगा है अब तो
हर कदम उठता है अब तेरी ही जानिब
कतरा ही सागर होने लगा है अब तो.............



Wednesday, June 1, 2011

मिज़ाज

ये वफ़ा-ओ-जफा के किस्से कब तलक
कब तलक ये इश्क-ओ-मुश्क की बातें
कब तलक जी सकता है कोई यूँ बँट-बँटकर
ये फरेब-ओ-हकीकत के फ़साने कब तलक
कभी तो उठा ये तेरे-मेरे के परदे
ये इसका और वो उसका के दुखड़े कब तलक
कब तलक रखोगे दूरियाँ ज़मीन-ओ-आसमान के बीच
ये मिलने-बिछड़ने के सिलसिले कब तलक
कब तलक यूँ 'कब तलक - कब तलक' करते रहोगे तुम "मनीष"
ये शोर-ओ-गुल, ये चीख-ओ-पुकार, ये सन्नाटे कब तलक

मान क्यूँ नहीं लेते तुम
की
ऐसा है तो ऐसा ही सही है
क्यूँ जिद पर अड़े हो
की
ये सही है और वो गलत
शायद...,
आँखों पर मन का कोहरा अभी घना है
इसलिए तवज्जो है उसपर जो हासिल-ए-फ़ना है

वाह जनाब वाह !!
बस अब इतना और बताने की मेहरबानी कीजिये जनाब
की ;

सुख-दुःख क्या वो भेजता है....??
क्या हम ही उन्हें नहीं बुला लेते अपने कृत्यों से....??

अगर ऐसा है तो फिर आदर कैसा और किसको मिलना चाहिए....??
और गरचे ऐसा नहीं है तो स्वीकार किसका होना चाहिए....??

क्या उसका जो है ही नहीं....??
या उसका
जिसे जीतें हैं हम हर पल
जो महसूस होता है हर लम्हा....??

जो है कोई जवाब
तो
जवाबदारी भी लीजिये जनाब
सुनी-सुनाई धारणाओं से बहल जाएँ
ऐसे बचकाने नहीं हमारे मिज़ाज

जानता हूँ मगर
की..

हाक़िम मेरा खुद ही मरीज-ए-इश्क है
वो इस मर्ज को क्या दुरुस्त करेगा
उल्टा मुझे भी इश्क में खुद सा बर्बाद करेगा
और जो हुआ वो हस्ती का शौक़ीन
तो मस्ती को मेरी बर्बादी कहेगा
मुझे तलाश है अपने तई किसी सूरज की
जो
रोज़ उठाया करे मुझे मेरे ख़्वाबों-ख्यालों से
की
आँख खोले से भी जब नज़र आए वो ही सामने
तो
ख़्वाबों और ख्यालों में कोई गफलत न बचे
हर ख्व़ाब ख़याल और हर ख़याल हकीकत लगने लगे
हाँ...
इतना उठाये वो मुझे
की
झमाझम बरस पडूँ में
प्यासी धरती पर
काले-काले बादलों की तरह
हाँ...
इतना बरसे अब्र-ए-इश्क
की
एक हो जाएँ
ये ज़मीन-ओ-आसमान...