Friday, October 28, 2011

सूरज

खैरात में जो मिल जाए
वो दुआ नहीं दया होती है...

एवज में जो की जाए
वो मोहब्बत नहीं तिजारत होती है...

ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी
कुछ पाने-खोने का नाम नहीं ए दोस्त

इस तरह दुनिया
आबाद नहीं तमाम होती है...

मार डालो तुम मुझे
सच्चा कह-कहकर

हैवानों को इंसान करने की
कोशिशें यूँ ही कामयाब होती है...

गायब हो जाता हूँ हर शाम
सूरज की तरह

इश्क मुझसे करने की
चाँद-सितारों में ना हिम्मत होती है...

परले दर्जे का पागल हूँ मैं
खब्ती भी और सनकी भी

दूर ही रहने में मुझसे
सबकी भलाई होती है...

करम करता हूँ
मोहब्बत और खुलूस से

पे उनके हासिल पर
मेरी नज़र ना होती है...

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