देखिये पाते हैं कुशाक बुतों [man made gods] से क्या 'कैफ'
एक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है...
सब कुछ वही होकर भी
नया-नया सा लगता है,
इश्क हुआ जबसे
हर पल नया-नया सा लगता है..
जाने कहाँ गयी
वो कल की कल-कल,
अक्स ये मेरा
नया-नया सा लगता है..
वही सूरत है
और सीरत भी वही,
शख्स ये मगर
नया-नया सा लगता है..
ना मंजिलें बदली
ना राही और ना ही रास्ता,
नक्श फिर भी
नया-नया सा लगता है..
तुम मैं हूँ
और मैं तुम,
रक्स ये हमारा
नया-नया सा लगता है..
बदले-बदले से
नज़र आते हैं 'मनीष',
नुक्स ये उनका
नया-नया सा लगता है..
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