मंगतों की भीड़ देखी हमने आज
निर्मल तेरे दरबार में...
मल-मल के नहा रहे थे लोग
वासनाओं के संसार में...
मखमल के मल से कर रहा था तू
लोगों को मालामाल
नीर बहा रहे थे राम
निर्मल तेरे दरबार में...
निरमा से भी होवे ना साफ़
ऐसा कलुषित हो चूका है तन ये तेरा
मन मंद-मंद है मुस्काए
निर्मल तेरे दरबार में...
दर-दर भटके है ये मन
छोड़ के अपना घर-द्वार
बार जो खुला है मदहोशी का
निर्मल तेरे दरबार में...
अब भी वक़्त है जाग जा
ओ पंजाब दे पुत्तर
आ पहुंचा है काल का पंजा
निर्मल तेरे दरबार में...
Man is bad case....isnt it?
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