मक्ता ये है जनाब की
फूँक दिया तुने कुछ ऐसा जोश मुझमें
के बस एक सांस ही अब काफी होती है
ले आने को जोश-ए-जूनून,
मिटा लेता हूँ बंद आँखों से
ये तेरे-मेरे बीच की दूरियाँ
आ जाता है दिल को सुकून...
ये ग़ज़ल नज़र करता हूँ
उन्हें....
जिनके पास आँख है
एक बेचैनी है ये इश्क
के जब तक के
तुझमे-मुझमे एक होने का एहसास नहीं...
एक सनसनी है ये दुनिया
के जब तक के
रात को दिन हो जाने की आस नहीं...
आँखें नहीं - दिल खोलकर देख नफासत से
के जब तक के
तू नहीं - हो रहा कोई रास नहीं...
सुकून नहीं इन निगाहों को
के जब तक के
तेरे पिया का इनमे वास नहीं...
देख पृथ्वी को दूर खड़ा हो चाँद पे
के जब तक के
एक ही वक़्त में नज़र ना आ जाए तुझे
अमेरिका में दिन और भारत में रात नहीं...
ये दो का मायाजाल है तब तक
के जब तक के
पूर्ण को देख सकने वाली आँख तेरे पास नहीं...
क्यूँ सताते हो तूम इश्क को
अपने दुखड़े सुना-सुना
के जब के
इश्क का होता सुख-दुःख से कोई सरोकार ही नहीं...
क्यूँ तेजी से धडके है ये दिल
क्यूँ पियु-पियु की करे है ये पुकार
के जब के
ना " पि " नज़र के सामने
ना " हूँ " में उसके पास
और
है मिलन की कोई बयार नहीं...
मेरा " मैं " मुझसे जुदा तो नहीं
तेरा ये " सच " तेरी कोई नई अदा तो नहीं
उफ़, ये तेरे-मेरे की भावना
मन बन गया कहीं खुदा तो नहीं...
तेरा मुझसे
यूँ कुछ खिंचा-खिंचा
कुछ दूर-दूर रहना
मिलवा कर हमें
हो गयी उससे कोई ख़ता तो नहीं...
और आखिर में ये भी कह दूँ जनाब की
रूह तो मेरी देख चुके हैं आप जाने कब से ही
सुना है मगर
की अलफ़ाज़ हमारे आपकी नज़र-ए-इनायत के काबिल नहीं...
फूँक दिया तुने कुछ ऐसा जोश मुझमें
के बस एक सांस ही अब काफी होती है
ले आने को जोश-ए-जूनून,
मिटा लेता हूँ बंद आँखों से
ये तेरे-मेरे बीच की दूरियाँ
आ जाता है दिल को सुकून...
ये ग़ज़ल नज़र करता हूँ
उन्हें....
जिनके पास आँख है
एक बेचैनी है ये इश्क
के जब तक के
तुझमे-मुझमे एक होने का एहसास नहीं...
एक सनसनी है ये दुनिया
के जब तक के
रात को दिन हो जाने की आस नहीं...
आँखें नहीं - दिल खोलकर देख नफासत से
के जब तक के
तू नहीं - हो रहा कोई रास नहीं...
सुकून नहीं इन निगाहों को
के जब तक के
तेरे पिया का इनमे वास नहीं...
देख पृथ्वी को दूर खड़ा हो चाँद पे
के जब तक के
एक ही वक़्त में नज़र ना आ जाए तुझे
अमेरिका में दिन और भारत में रात नहीं...
ये दो का मायाजाल है तब तक
के जब तक के
पूर्ण को देख सकने वाली आँख तेरे पास नहीं...
क्यूँ सताते हो तूम इश्क को
अपने दुखड़े सुना-सुना
के जब के
इश्क का होता सुख-दुःख से कोई सरोकार ही नहीं...
क्यूँ तेजी से धडके है ये दिल
क्यूँ पियु-पियु की करे है ये पुकार
के जब के
ना " पि " नज़र के सामने
ना " हूँ " में उसके पास
और
है मिलन की कोई बयार नहीं...
मेरा " मैं " मुझसे जुदा तो नहीं
तेरा ये " सच " तेरी कोई नई अदा तो नहीं
उफ़, ये तेरे-मेरे की भावना
मन बन गया कहीं खुदा तो नहीं...
तेरा मुझसे
यूँ कुछ खिंचा-खिंचा
कुछ दूर-दूर रहना
मिलवा कर हमें
हो गयी उससे कोई ख़ता तो नहीं...
और आखिर में ये भी कह दूँ जनाब की
रूह तो मेरी देख चुके हैं आप जाने कब से ही
सुना है मगर
की अलफ़ाज़ हमारे आपकी नज़र-ए-इनायत के काबिल नहीं...
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