Wednesday, November 6, 2013

शतरंज के खेल में CHECKMATE



मंशाएँ  रो-रोकर ही निसार होती हैं
हसरतें दबे होंठों से ही गुलज़ार होती हैं
अरमान मचल-मचलकर यूँ ही रोशन करते रहते हैं ख्वाबगाह
ख्वाहिशें तमाम यूँ ही नहीं इतनी दिलदार होती हैं

उसकी नज़रों से नज़रें आज मिला आया हूँ मैं
चुन्घिया गयी हैं आँखें जो सूरज से आँख लड़ा आया हूँ मैं
ज़माना कह रहा अब मुझे अँधा तो बेगाना कहे पापी
गुमनाम अंधेरों में अपनी लैला से अँखियाँ दो-चार जो कर आया हूँ मैं

इश्क़ ही शिव है, इश्क़ ही शक्ति है
नाज़-ओ-अदा हैं कभी उमा के
तो कभी भोले शंकर कि रुद्रात्मक सख्ती है
यही हैं इश्क़ के जलवे और यही इश्क़परस्ती है

ना तक़दीर बदलती है, ना तस्वीर बदलती है हुए हम जबसे नादान इश्क़ में,
ना तैरना आता है, ना डूबने का हक़ हमें है हासिल हुए जबसे हम गिरफ्तार इश्क़ में

रख हौसला वो दिन भी आएगा,
प्यासे के पास चल के खुद दरिया आएगा,
यूँ थक कर ना बैठ ऐ राह-ऐ-मंज़िल के हमसफ़र मुसाफिर,
मंज़िल भी आयगी और चलने का मज़ा भी आएगा

तेरी प्यारी सी उम्मीद कैसे तोड़ जाऊँ,
तू ख्वाब देखे तो मैं नज़र कैसे ना आऊँ,
कुछ तो बात है हमारे इस रिश्ते में,
क्या आपके कदम नहीं कहते आपसे कि चल एक बार मिला लाऊँ

दुआओं में कमजर्फ मंतशा कर 'उसकी' रहमदिली को मैं शर्मिंदा करता चला गया,
'वो' देना चाहता था 'सबकुछ' और मैं नाकुछ बहुत कुछ मांगता ही चला गया


शतरंज के खेल में;
एक अदना से वज़ीर को रानी समझने कि भूल कर बैठे बाबा लोगों के मुरीद,
मात देने कि चाह में अमावस रातों कि रानी के गुलाम हो बैठे ये डॉलरों के मुरीद

प्रगतिपूर्ण जरुरत इस बात को जान लेने कि नहीं
कि कोई आपको कितना चाहता है
बल्कि इस बात में है कि क्या आप खुद सचमुच किसीको दिल से चाहते हैं
या बस प्यार के मतलबी व्यापारी और असल में धन के पुजारी हैं?

हम तो सदियों से ही अकेले हैं
बस दिल कि ही गलियों में खेले हैं
तन्हाई माशूक़ा हुई जबसे हमारी
आठ पहर चौसठ घड़ी हर सूं लग रहे दिलकश मेले हैं

ना पीपल का रुखा पत्ता बनना है मुझे, ना मेहंदी का रुतबा हासिल करना है मुझे,
किसी चूहे को हाथी बनने का ख्वाब बुनते ना देख ये सीखा है मैंने
कि
जैसा बनाना चाहते है मुझे मेरा खुद बस वैसा ही बनना है मुझे   

yo yo भगत मनीष - yo यो दुर्गे शक्ति

   
 
Man is bad case....isn't it?


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