दो तरह के स्कूल चल रहे हैं बाजार में,
एक वो जो किताबी शिक्षा देते हैं ५-६ घंटे में,
दूसरे वो जो सामाजिक ज्ञान देते हैं सस्ते में,
शिक्षा तो खैर रह जाती है ठंडे से एक बस्ते में,
व्यवहारिक ज्ञान का मगर चहुंमुखी विकास बंटे-बंटे में...
किताबी शिक्षा लगती है नौजवानों को पुरातनवादी और कट्टर,
सांसारिक व्यवहार के मगर मायावी और ट्रेंडिंग हैं चक्कर...
पाठशालाएं मांगती हैं शिक्षित करने की मोटी-मोटी फीस,
स्मार्ट बनाने के लिए गूगल बाबा के पास गुरु घंटाल मगर बीस,
निशुल्क न सही पर शुल्क, शुल्क कब लगता है साहब,
जब साहेब आपके पॉकेट में हों और मोबाइल हो आपका दफ्तर @peace...
अपनी तो पाठशाला - मस्ती की पाठशाला का फंडा कोई नया-नवेला बवेला थोड़े ही है मेरे भाई,
कभी हमने भी तो रामायण, महाभारत के गूढ़ तत्वों की बुद्धू-बक्सा देख-देखकर पूर्ण की थी पढ़ाई...
पढ़े-लिखे अनपढ़ों की एक फ़ौज खड़ी करने वाला एक जिहादी सा हिंदुस्तान बन गए हैं हम
फसल को पैदावार पर करना हो अगर नाज़ तो पहले राम/कृष्ण की तरह जियो मेरे हमदम...
वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
जय हिंद 🇮🇳
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