Guess who..??
मेरे देखे से तो अब तक के जीवन दर्शन में मुझे एक औरत ही औरत की असल दुश्मन नज़र आई है। ऐसा शायद इसलिए कि दर्पण में मुझे अपने भीतर भी एक औरत नज़र आई है। या फिर ऐसा शायद इसलिए क्योंकि उस ममतामयी, आनंदमयी, चैतन्यमयी, गरिमामयी औरत ने अपने मूलभूत स्त्रैण चरित्र को खो कर दुनियादारी या समाज का पुरुषीय व्यक्तित्व अपना लिया है। ऐसा उस स्त्री ने शायद राज़ी-खुशी, शायद डर के मारे या शायद सफलता पाने के लिए किया है।
आपको क्या लगता है
No comments:
Post a Comment
Please Feel Free To Comment....please do....