जिस्म को जिस्म की ही जरूरत होती है
जिस्म चाहने वाला जिस्म ही तलाशता है
रूह को रूह की ही जरूरत होती है
रूह रुह को ही तलाशती है
जिस्म उपरी तौर पर ही प्रेम करता है.. मगर..
रूह रुह की गहराई में उतर जाती है
जिस्म से प्रेम करने वाले अक्सर ही धोखा
दे जाते हैं…
मगर… रूह से प्यार करने वाले ही रिश्ता
निभा जाते है..
✍️🌹 ©अनीता अरोड़ा
#जिस्म और रूह
जुदाई का आलम नहीं जानते जिस्म हो या रूह
खुदी को कबूल ले ख़ुदा की खुदाई की तरह
ज़िंदा जिस्म में ही ज़िंदा रहती है कोइ भी रूह
हाँ...दिखाई नहीं पड़ती वो भी मन ही की तरह
साँसों के दम पर ज़िंदगी होती मौत से रू-ब-रू
रूह-जिस्म संग जीते-मरते हैं प्रेमियों की तरह
दो में से एक को चुनता नहीं कोई भी सुर्खरू
चुनाव पक्षपाती हैं बेबस मतदाता की तरह
तोड़-मरोड़ लो या कर दो उन्हें तुम बेआबरू
रोड़ा अटका रहेगा गुलाब में काँटों की तरह
सुना है के जिस्म दफ़न हो जाते हैं पर मरती नहीं है रूह
जिस्म के बाज़ारों में रूह को मरते हुए देखा है ज़मीरों की तरह
✍️🌵 ~दीवाना वारसी
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