Monday, March 1, 2010

ऊफ !! ये महंगाई..

महंगाई के ख्यालों से दबे आदम-हव्वा को 
दी हमने जो मोहम्मद के जन्मदिन की बधाई..
तो चिढकर बोले वो की देखते नहीं ये महंगाई..!!
लगता है सुबह ही सुबह तुमने भंग है चढाई..!!
होली के दिन ही उन्होंने ढोल दी हमारी सारी ठंडाई..!!

रुआंसे हो पहुंचें हम नबी के पास,
नजराना तो पेश ना कर सके, 
पेश कर दी बस सूरत-ए-महंगाई,
सुन दुहाई, देख चतुराई,
हँस के बोले वो की ये समस्या तो है चिरस्थायी,
हर साल लगभग इसी वक़्त 
मुहँ-बाँए खड़ी हो जाती है ये फसल 
चाहे जितनी भी की हो फिर तुमने इसकी कटाई,
ऐसे,
जैसे की ज़ख्मो पे डाल दी हो किसीने मुट्ठी भर खटाई,
असल सवाल मगर ये..,
के आदम ने इतनी आबादी ही क्यों बढाई..??
जर-जोरू-ज़मीन के पीछे ही तो होती है सारी लड़ाई..
पर तुम क्यों इतने चिंतित हो प्यारे मनीष भाई..??
तुम्हारी सालाना income तो
पिछले दस सालों से 
१.६ लाख प्रति वर्ष से भी काफी कम है
इनकम टैक्स चुकाने की झंझटों से
हमने तुम्हे बचा रखा है मेरे भाई..!!
बच्चे पालने "पड़ें",
ऐसे करम भी तुम्हारे ना थे, ना हैं मेरे भाई 
रहमत है तुम पर खुदा की 
के इस महंगाई के माहौल में भी
तुम बेऔलाद होकर माता-पिता के कर्तव्यों से 
बेख़ौफ़ बचे हुए हो तुम मेरे भाई 
तुम्हारी ज़िन्दगी में तो बस
मज़े ही मज़े हैं प्यारी के मेरे भाई..!!
और फिर तुम्हारे सारे शौकों को पूरा करने में
होने नहीं देते हम जरा सी भी कमी मेरे भाई..!! 
तुम ही बताओ क्या कभी तुम भूखे सोये हो
क्या कभी ठण्ड से ठिठुरे हो बिन कम्बल 
क्या रोटी-कपडा-मकान की कभी कोई कमी है आई..??
शुक्र अदा करो उसका, जो है तुम्हारा साईं......
शर्मिंदा होकर हमने
अपनी गर्दन बस थोड़ी सी ही झुकाई,
दिल ही दिल बडबडाय मगर हम की 
आप को बजट पेश होने के ठीक अगले दिन ही
करने को सूझी हमसे ये ठिलवाई,
मिलाद-उल-नबी आपने आज के ही दिन क्यूँकर लाई,
आज के दिन महंगाई यूँ लगती है जैसे हो कोई कसाई,
उर्स तो क्या मातम भी नहीं मना सकते अब हम,
कसम खुदा की - आप हो सनम बड़े हरजाई..!!
शिवजी ने..,
जो उसी वक़्त जाते थे मक्के के जानिब,
सुन ली हमारे मगरूर मन की नाफ़रमानी बात,
कड़क के बोले वो,"कौन है ये नामाकुल !
जो दिखा रहा है अपनी जात..??
तनख्वाह ज्यादा - शौक रईसों के,
स्टॉक होल्डिंग ज्यादा - दलाल ईंटो के, 
इन्वेस्टमेंट ज्यादा - सपने अम्बानियों के,
तो क्यूँकर ना होगा हाथ-खर्च को पैसा कम..!!
ऊपर से कार लोन - होम लोन की EMI में भी है दम,
शादी-ब्याह कर समाज में ऐंठते नहीं तुम कम, 
देश-विदेश की यात्रा में भी खर्चे करते नहीं तुम कम  
भविष्य को सुरक्षित करने में लगे हैं जो
उनके वर्तमान में तो होगा ही गम !!"
पार्वतीजी ने भी कर दी हमारी खिचाई,
कहने लगीं,"क्यूँकर यूँ अकाल ही लुटा रहे हो
तुम अपनी तरुनाई..??
भजन करो भजन 
की देखते नहीं रुत पिया मिलन की है आई..!!
काहे करते हो अपने आका से तुम यूँ बेवफाई..??
लक्ष्मी जी ने भी तो 
सदा से ही अपनी दौलत तुम नाशुक्रों पर ही लुटाई,
फिर भी देखो तो सही 
उनके खजाने में कभी धन की कोई कमी ना आई..??"
देख-सुन ये हाल हमारा
विष्णु जी ने रहमदिली दिखाई,
मक्का-मदीना के दो टिकिट देकर के बोले,
"जा ! मौला करेंगे वहाँ तेरी अगुवाई !!
जा जा ! ऐसे चकित हो क्या देखता है...
वो दूसरा टिकिट..वो ...
तेरे दोस्त आदम के लिया है मेरे भाई..!!"
बोलो चलोगे..??
बोलो ना..!!

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मेरे आदम भाईयों और हव्वा की बहनों 
की;
ख़ुदा के रसूल में ज्यादा देर नहीं लगाई जाती 
करो देर अगर,
तो बनी-बनाई बिगड़ जाती है
होती है फिर जगत में खूब जग-हँसाई..!!
उफ़ ये महँगाई ...उफ़ ये महँगाई 

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