उसने डाल रखा है खुद पर पर्दा..!!
या की..,
पड़ गया हमारी ही आँख पर पर्दा..!!
पर्दा जो दो जहां पर है काबिज..,
खोली जो आँख, दिखाई दिया, वो अक्ल का गर्दा..!!
ये आँख वो आँख नहीं जो देख आये दूर-दराज के मंज़र,
कह ना पाए मगर खुद को कभी बन्दर..!!
दौलत समझ जमा करे ज़माने का गर्दा..,
पान खाए सबाब के और थूके जाफरानी जर्दा..!!
ये नज़र तो वो नज़र जैसे सलीब हो या खंजर..,
लहू-लुहान करे खुद को, गुलिस्तान हो जाए बंजर..!!
दर्द भरे दिल को कर जाए ये मर्दा..,
लामकां हो जाए जैसे मकां कोई फर्दा..!!
ये निगाहें मिल ना सकेंगी जा मस्जिद या मंदर..,
ऐनक अपनी उतार के झाँक ले खुद के अन्दर..!!
चिंता-हवन सब छोड़ी के रे बादल है गरजा..,
प्रेम-लोबान जलाई में नहीं रे कोई हर्जा..!!
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