Friday, October 29, 2010

दो का खेल...

हर एक का अपना अलग ताना-बना है..,
ज़िद मगर आफताब की माहताब वो हो जाए..!

मुखोटों में रहने वाले
क्या जाने लुत्फ़
जो नग्न सच्चाई में है..,
झुका लेते हैं नज़र एक ज़रा रोशनाई से..!

कह दूँ जो में खुद को खुदा
तो होते हैं वो खफा..,
अमा खां..
हमने ये कब कहा की तुम शैतान हो..!

भगवान् करे ऐसा हो जाए
भगवान्  करे वैसा हो जाए..,
अरे भाई..
सब कुछ  भगवान् ही करे
पर पहले भगत का " मैं " तो मरे..!

ये ना मिल पाने की तड़प
तुम में हो तो हो..,
हम रोज मिल लेते हैं अपने आप से..!

इश्कनुमा दोस्ती की है जब
तो यूँ गमखार ना बन..,
की दूरियाँ करवा देंती हैं तार्रुफ्फ़
उस सुरजनुमा इश्क से 
जो डूबता ही नहीं कहकशां में कभी..!

 

दो का खेल...




कहने को तो एक ही गला है
फिर भी दोगला हो जाता है आदमी..,
जरुर..
दोआँखों से कुछ और  ही बोल जाता है आदमी..!


सुनता तो  है वो गाना एक ही
दोगाने का गाना मगर गाए जाता है आदमी..,
जरुर..
दो कानों से कुछ ज्यादा ही सुन लेता है आदमी..!


दो नैना मतवारे कैसे ना जुलम करें
देखे एक और कहे  दो जब आदमी..,
जरुर..
दो आँखों  से दो आलम को दूश्वार कर लेता है आदमी..!


दो साँसों का खेल है सारा
कहता है जिसे संसार ये आदमी..,
जरुर..
दू नाली के दम से मरते दम  हो जाता दो-चार है आदमी..!


यूँ तो दोस्ती - दुश्मनी का बोलबाला है दुनिया में
दो दिल मगर मिल जाए तो खिल जाता है आदमी..,
जरुर..
दिल ही दिल में दो से चार हुआ चाहता है आदमी..!


दो लगा के चल दिए
भरी दोपहरी में ' मनीष '
दुलत्ती से उनकी कब बच सका है आदमी..,
जरुर..
दुराग्रही, दुराचारी, दूषित दुस्वप्न है ये आदमी..!


    

1 comment:

  1. कह दूँ जो में खुद को खुदा
    तो होते हैं वो खफा..,
    अमा खां..
    हमने ये कब कहा की तुम शैतान हो..!
    ...
    laajawaab !

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