इश्क की बातें
बातें है फ़कत - इश्क नहीं,
इज़हार-ए-इश्क बयाँ का नहीं मुतासिर
ये बयाँ तो बयाबाँ ही समझ सकेंगे.......!!
फिर वो इश्क नहीं जो रंज-ओ-ग़म के आंसू बहाए,
छलक पड़े आँखें शुक्र-ओ-सुकून से तो बात और...
बात ये मगर...
प्रेम-भिखारी नहीं
प्रेम-पुजारी ही समझ सकेंगे........!!
समझ भी आ जाए गर ये बात
तो समझ न बैठना
तू खुद को शिरी-ओ-फरहाद,
दास्ताँ तेरे इश्कां होने की
तेरे रहम-ओ-करम ही कह सकेंगे.........!!
रहम-ओ-करम वो नहीं
जो करता है तू
दिल-ओ-दिमाग की सुन,
फैसले ये रूहानी
दम-बा-दम अपनी हस्ती मिटाने वाले ही कर सकेंगे.........!!
क्या करें की साल-ओ-साल
लगे रहते हैं हम
खुद को सजाने-सँवारने में,
मजा मगर ये
की मिट्टी में मिलकर ही इश्क के लायक हम हो सकेंगे.........!!
तू ही लुहार,
तू ही सुनार
और जोहरी भी तू ही,
परखता भी तू है
चढ़ाता-उतारता भी तू है
और गलाता भी तू ही है खुद को
भगवान् भरोसे मगर हैवान इंसान न हो सकेंगे.........!!
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