कविता..
महज जब कल्पनाओं की उड़ान हो
तो बासी लगती है
महिमा-मंडित हो जाये जब औरत
तो माँ सी लगती है
माँ इसलिए महान नहीं की औरत है वोतो माँ सी लगती है
मुझे पैदा किया
बस इसीलिए महान सी लगती है...
माँ ये है..
माँ वो है..
माँ ऐसी है..
माँ वैसी है..
माँ के लिए ये करो..
माँ के लिए वो करो..
इतना शोरगुल मचा है आज माँ के नाम का
की लगता है की एक ही दिन में सारा प्यार सिमट आया है
चलो..
कर्तव्यों की इतिश्री हुई
और साल भर की छुट्टी भी हुई...
पर..
इस सब हंगामे में
कोई नहीं जानता
की उस औरत का क्या हुआ
जो
माँ भी है..
माशूका भी है..
नानी भी है..
और दादी भी..
बहन भी है..
और है बीवी भी..
मगर इन सब से पहले है वो खालिस इंसान...
ये ठीक है..
की हर औरत माँ हो सकती है
पर इसमें इतना ख़ास क्या
माँ होना एक प्रकृति प्रदत्त उपहार है
जो निभाती है औरत
खुद को पूरा करने के लिए
ठीक उसी तरह..
जैसे ये सारा संसार चलता है
प्राकृतिक नियमानुसार
पर क्या ये सच है
क्या वाकई हम प्राकृतिक रूप से जी रहे हैं.....??
तो..
क्यों ना आज ही के दिन
खुद से एक सार्थक सवाल करे हर औरत
और हर वो इंसान
जिसके अन्दर शक्ति-स्वरूप है विराजमान
की
क्या वो जी रही है अपने प्राकृतिक धर्मानुसार
या फिर...
चल रही है वो मन निर्मित जगत अनुसार...??
अगर से
जी रही है वो धर्मानुसार
तो
उसकी संताने इतनी अधर्मी क्यूँ हुईं जा रही हैं..??
और जो नहीं चल रही वो मनानुसार
तो
पद-प्रतिष्ठा-सम्मान के लिए पागल क्यूँ हुई जा रही है..??
क्यूँ बराबरी करना चाहती है वो इन अधर्मियों से
क्यूँ वो मर्द सी हुई जा रही है..??
वो माँ ही तो है
कोई परम-पूज्य प्रकृति नहीं
क्यूँ फिर माँ होने पर इतना इठला रही है..??
वो माँ ही तो है
जो बो देती है बचपन में ही द्वैत के बीज
पूछती है जब वो अपने अबोध से
ये घिनोना सवाल
की
पापा ज्यादा अच्छे है या माँ......?
वो माँ ही तो है
जो भर देती हैं अपनी महत्वाकांक्षाओं का ज़हर
पूछती है जब वो अपने नादानी में
बड़े होकर क्या बनना चाहते हो.....?
वो माँ ही तो है
जो अपने नन्हे में पैदा करती है डर
जिद करतें है वो जब मासूम सी
बना डरावने चेहरे जब वो कहती है
चुप कर...नहीं तो बाबा आ जाएगा - पुलिस ले जाएगा.....!!
वो माँ ही तो है
जो सिखाती है अपने लाडलों को चालबाजियाँ
कहती जब वो एक है और करती कुछ और है.....!!
वो माँ ही तो है
जो डाल देती है अपने अधकचरे अंधविश्वास अपने बच्चों में
बेवजह सर झुकाने को कहती है
जब वो मंदिरों और मस्जिदों में....?
वो माँ ही तो है
जो थोप देती है मजहब अपने कलेजे के टुकड़ों पर
गर्वित हो जब वो कहती है
बप्पा जय-जय करो बेटा.....!!
वो माँ ही तो है
जो कर जाती है झूठ को गरिमामय
अपनी सुविधा के लिए
बड़ी आसानी से जब वो कहती है
अंकल से कहना - पापा घर पर नहीं हैं.....!!
वो माँ ही तो है
जो उकसाती है द्वेष और प्रतिस्पर्धा की क्रूर भावनाएँ अपने सपूतों में
बड़ी अदा से ये कहकर की
चिंटू की तरह फर्स्ट आ कर दिखाओ -
तब साइकिल मिलेगी....हाँ !!
वो माँ ही तो है
वो माँ ही तो है
वो माँ ही तो है
पर वो भी क्या करे बेचारी
की उसे उसकी माँ ने
और उसकी माँ को उसकी भी माँ ने
यूँ ही मनानुसार जीना तो सिखलाया था...
वो ही सदियों से सड़-गल चुके
वो ही पुराने पाठ - वो ही पुराने संस्कार
घिसट रही है वो अब तक
के जबकि हकीकत ये है कीज़माना बदल चूका है और वो भी....................!!
romanchit bhi hun stabdh bhi hun nihshabd bhi hun ....kai baar padha ise
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