खुदा की लिखी हुई ये किस्मत
क्यूँ बदल देना चाहता है ये इंसान..??
क्या खुदा के लिखे पर यकीन नहीं
या खुद को खुदा समझता है ये इंसान..??
बोलो..
बोलो..
बोलो ना..
नहीं जानत पैदा हुआ हूँ मैं क्यूँ...
नहीं जानता मर जाऊंगा मैं क्यूँ...
ये जो छोटी सी ज़िन्दगी है बीच में
इसकी भी फ़िक्र लूँ मैं क्यूँ...
तू ही संभाल अब तू तुझको
मैं मुझमें रहूँ ही क्यूँ...
नहीं जानत पैदा हुआ हूँ मैं क्यूँ...
नहीं जानता मर जाऊंगा मैं क्यूँ...
ये जो छोटी सी ज़िन्दगी है बीच में
इसकी भी फ़िक्र लूँ मैं क्यूँ...
तू ही संभाल अब तू तुझको
मैं मुझमें रहूँ ही क्यूँ...
अरमान पलते हैं जब मगरूर इस दिल में
तो कसूर हमेशा वक़्त का होता है क्यूँ...
तयशुदा नहीं जब कुछ भी यहाँ
हर अंजाम मेरे हक में है फिर क्यूँ...
क्यूँ न रोये ये अक्स जार-जार
अपने-आप को बिखरने से बचा न पाए तुम क्यूँ...
क्यूँ इंतज़ार है किसी चाहने वाले का
खुद को दीवाना बना नहीं लेते हो तुम क्यूँ...
क्यूँ नहीं कर लेते तुम उसके लिखे पर एतबार
यूँ बार-बार अपनी मन-मर्जी चलाते हो तुम क्यूँ...
क्यूँ ठुकराते हो कुदरत की रहनुमाई को हर बार
एक बार दिल लगा नहीं लेते हो तुम क्यूँ...
सब-कुछ साफ़ नज़र आता है तुम्हें 'मनीष'
अक्ल का चश्मा लगा फिरते हो फिर तुम क्यूँ.........?
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