Sunday, June 23, 2013

राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण


राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण

इस ना-कुछ को "सबकुछ" की झलक नहीं ना मिली है अबतक ...,
सुना है,
शून्य होते ही 'ना' के और 'कुछ' की चाह के,
'सबकुछ' प्रगट होता है वहाँ,
"पूर्ण" विराजमान सदा से जहाँ ..!! :-)

मन is bad case....isn't it?

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