http://youtu.be/czMyHUbdPLI भाषण
कलमाए लाइल्लाह इल्लल्लाह मोहम्मदू रसूलअल्लाह
Man is bad case....isnt it?
कलमाए लाइल्लाह इल्लल्लाह मोहम्मदू रसूलअल्लाह
बिस्मिलाहेरहमानेरहीम होवल वारसुल करीम
अस्सलामवालेकुम जनाब-ए-मोह्तरिन
बाद शुक्रिया के बाअदब चंद अलफ़ाज़ पेश करता हूँ आपकी रूहानी ताबीर के लिए। कुबूल फरमाईएगा हुजुर।
तुझसे ही हूँ मैं
तेरे ही संग हूँ मैं
तुझमे ही खो जाऊँगा मैं एक दिन ...,
तू मुझे आजमाए क्यूँ
की तुझसे अलहदा नहीं हूँ मैं ..!!
बस इतना जान ले मेरी जान
की तू ना दिल है
न है तू कोई सोच ...,
तमाम हाथ
इस अजायबघर में तुझे
छूकर भी छू नहीं सकते ..!!
तुझ पर ही और तुझसे ही
ख़त्म ये सारी क़ाएनात होगी ...,
शुक्र है
की फिर ना कभी ये ज़लालत भरी ज़िन्दगी होगी ..!!
करेंगे ज़िक्र तेरा अब कुछ ऐसी अदा से
ना तुझे ज़हमत देंगे, ना ज़माने की शिकायत होगी ..!!
खुद से ही किया करेंगे बात
होंगे हम जब भी ज़माने से रु-ब-रु
अलहदा समझने की तुझको खुद से अब ना हमसे हिमाक़त होगी ..!!
ग़म हो या हो फिर ख़ुशी
दोनों से ही बनाये रखेंगे हम एक सी दूरी
एक के नाम पर अब ना दुसरे की शहादत होगी ..!!
कहते हैं मौलाना तारिक़ ज़मील
के 'मौत के साथ ज़र्फ़ लगे तो सब शुन्य हो जाता है'
कोई बताये उन्हें की मैं बताऊँ क्या
के 'शुन्य तो तब भी शुन्य का शुन्य ही रह जाता है'
ठीक उसी तरह जिस तरह;
"पूर्ण में से पूर्ण निकाल दो तब भी पूर्ण ही शेष रह जाता है"
बात ये संसारी गणित से या दिमागी फितूर से नहीं
अपितु मोहब्बत भरे दिल से जी कर ही महसूस की जा सकती है मेरे यारब ...
कहते हैं मौलाना ये भी
की 'मैय्यत उठते ही "सबकुछ" उठ जाता है'
हयाती में फिर भी वो उठाते हैं ये दिमागी सवाल
की 'हमें किसने बनाया, क्यूँ बनाया, किसलिए बनाया ??
और फिर बनाकर हमें क्यूँकर मिटाया ??'
जीते जी इन महीन सवालों का जवाब ढूँढने की भी हमसे फ़रियाद करते हैं ये मौलाना और फिर किताबी जवाब देने की जल्दबाजी में खुद के ही बने-बनाये तैय्यारशुदा जवाब सुझाने की रुसवाई भी कर बैठते हैं ये मौलाना साहब ... और वो भी अल्लाह का नाम लेकर ताकि हम हामी भर मान लें उनके उस जवाब को जो हमारा खुद का जज़्बा नहीं।
वाह ...क्या नायाब तरीका अपनाया है जोर-ज़बरदस्ती अपनी बात मनवाने का !!
पूछे जो अब कोई पलट कर एक सवाल के अल्लाहताला ने जिस इंसानी मोहम्मद को दिए थे इन सवालों के जवाब वो तो नबी थे पर हम क्या हैं, कौन हैं, कहाँ हैं जो रखें एहतराम उन्हें बक्शी गयी आयतों पर ??
क्यूँ रखें हम ये उधार का ईमान और कहलायें मुसलमान ??
और जो ना रखें हम बादस्ता मुसलसल ईमान उनकी बातों पर तो कहलाते हैं हम काफिर क्यूँ ??
आखि अल्लाहताला अपनी रहमदिली से हमें भी नए सिले नए जवाब दे सकते हैं।
दे क्या सकते हैं ... देते आयें हैं "वो" और दे रहें हैं "वो" आज भी, अब भी हम सबको हर सवाल के आमूलचूल जवाब बहिश्त में पल-पल, हर पल, हर वक़्त अपनी नूर-ए-रोशनाई की जानिब से हमें ...
अब ये बात और की हम में से अधिकाँश लोगों ने 'तौबा' कर ली है अपनी ही अंतर आत्मा की आवाज़ सुनने से और दीन-ओ-ईमान की राह पर चलने से, अमल करने से।
'मौत' से ना दरो तुम हमें यूँ मौलाना जी
की ये मौत भी अल्लाहताला ने बक्शी है हमें जानबूझकर
सजा नहीं सौगात है ये
हमारी आत्मा को परमात्मा से एकाकार होने के लिए ...
बात सिर्फ इतनी सी है
की सबकुछ निर्भर करता आया है, कर रहा है और ताउम्र करेगा भी हमारे द्वारा पल-पल किये गए, करने के लिए गालिबन, बातिमन, ज़ाहिरन चुने गए नित्य या दैनिक करमों पर ...
हमारे ये करम ही तय करेंगे हमारी आखरी मंजिल ...
जियेगा आनंद-उत्सव्-ध्यान से जो खुद की रची क़ाएनात में हर वक़्त
क़यामत के दिन भी उसे सादर आमंत्रित किया जाता है उसे नूह की नौका में
खुदाया बाखुदा हम भी देखेंगे
की कैसे मारता है, ख़त्म करता है खुदा हमारी मोहब्बत भरी दीन-ओ-ईमान की राह पर बादस्तूर चलने वाली रूह को
तेरी महफ़िल-ए-बारगाह में किस्मत आजमा कर हम भी देखेंगे
हम नबी ना सही पर तेरी रहमत आजमा कर हम भी देखेंगे
अब तक परदे में जो छिपा रक्खी थी तूने जो जलवागीरी उसकी नुमाइश हम भी देखेंगे
और हाँ ...तू भी चौंक उठेगा इस नाचीज़ खुदी को खुदा की खुदाई से खुदाया अलहदा ना देख
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है
नहीं जी सकता जो 'अभी और यहाँ में' खुदा की खुदाई को जन्नत मान
तो फिर भला उस शख्स का ईमान, रसूल और वजूद क्या है
Man is bad case....isnt it?
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