"अति का भला ना बरसना, अति की भली ना धुप,
अति का भला ना बोलना, अति की भली ना चुप"
प्रकाश था, रौशनी थी पर बिजली ना थी,
राह थी, राहगीर थे पर राहगीरी में ना था आज वो दम दमा दम दम,
ना ढोल थे, ना नगाड़े थे जो करते ढम ढमा ढम ढम,
ढक्कन थे बस कुछ, जो बेवजह भर रहे थे दम,
बगड़ बम बम बगड़ बम बम बगड़ बम बम
नाद था, निनाद था, उत्साह था, उल्ल्हास था पर थी ना उनमे वो पहली सी उमंग,
ध्वनि का ना शोरगुल था, ना ऊऊऊऊऊऊ की चीत्कार थी,
और ना ही मचा रहा था कोई बेबुनियाद हुड़दंग,
जाने कौन उनकी इस लष्करी ललकार को सरेआम कर गया भंग,
बत्ती कर गया गुल वो इस prizeless फैशन परेड की,
ruthless स्ट्रीट smartness की,
मनमोहक नाज़-ओ-अदाओं की सुबह-सुबह ही,
जाने कौन घोल गया आज हवाओं में ये ज़हर,
आब-ओ-हवा में छ गया जैसे कोई मायूस मातमी रंग,
जाने कहाँ उड़ गयी वो 'ये जवानी है दीवानी' की मस्ती भरी तरंग,
मैं मलंग, मैं मलंग, मैं मलंग
टेक्नोलॉजी की गुलामी आज फिर ज़ाहिर कर दी गयी हमपर बेधड़क,
आम दिनों की तरह ही आज भी सुनसान ही पड़ी रह गयी वो नामचीन शोशेबाजों की संडे वाली सड़क,
हाए....कब आएगी लौट के फिर वही चमक-धमक, वो करतल ध्वनि, वो तड़क, वो भड़क,
कब धड़केंगे सीने हमारे सुनकर के दिल की झनक, वो आत्मा की आवाज़, वो ऊँकार की धनक...??
"नूर-ए-खुदा, नूर-ए-खुदा
तू कहाँ छिपा, मुझे ये बता"
Man is bad case....isn't it?
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