Friday, December 13, 2024

आँखें





आंखों का स्पर्श कभी-कभी,
शब्दों से भी गहरा होता है
आँखें चुभती भी हैं
आँखें सजती भी हैं
आँख मारी भी जाती है
आँख उतारी भी जाती है
आँखें आती हैं
तो जाती भी होंगी
आँखें निहारती हैं
तो इतराती भी होंगी 
आँखें बहती भी हैं 
आँखें सहती भी हैं 
आँखें डराती हैं, धमकाती हैं
चमकती हैं, चमकाती हैं
आँखें इधर-उधर मंडराती हैं जब
शामत सी आ जाती है तब
आँखें बंद भी हो जाती हैं
आँखें खुल भी जाती हैं
आँखें उदास हो जाएं तो 
आँखें नम भी हो जाती हैं
आँखें इशारे कर जाएं तो
आँखें शर्माती भी हैं
आँखें तरेर दे कोई तो
आँखें लाल भी हो जाती हैं
आँखें मिल जाएं तो 
आँखें खिलखिला उठती हैं
आँखें शर्मसार हो जाएं तो
आँखें झुक भी जाती हैं
आँखें खिल जाएं कभी तो
कभी भर भी आती हैं
आँखों-आँखों में बात हो जाए तो
आँखों-आँखों में इकरार हो जाए तो
नज़रें मिला कर नज़रें उतारनी भी पड़ती हैं
आँखों की मस्तियाँ भी हैं, शोखियाँ भी हैं, और है गुस्ताखियाँ भी
आँखों के दीवाने भी हैं, परवाने भी हैं, और हैं कई अफसाने भी
नज़रों की ये जो सौगात है
नज़र नज़र की बात है
छू जाएं गर तुम्हें तो नज़राना 
ना छू पाएं गर तुम्हें तो पर्दा
छू लेने दो अगर तुम तो उल्फ़त आशिक़ाना 
छू लो अगर तुम तो अंदाज़-ए-बयां क़ातिलाना..

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