*महज़ एक स्टेशन नहीं था वो स्टेशन:*
यादें साधु और पान-पट्टी की आज भी जवान हैं वहाँ...
चाय-कचौरी के लाजवाब स्टाल की सुगंध तड़पाती है आज भी...
पापा और उनके सहकर्मियों का सुट्टा बार भी हुआ करता था वो लालबाग का स्टेशन...
पठानकोट एक्सप्रेस और पंजाब मेल के आने-जाने के बीच कराता था चंगी कुड़ियों के दीदार भी वो स्टेशन...
जाने ज़िंदगी में दुबारा कब आएगा हसीन यादों का वो प्राचीन मगर दुर्लभ सा एक स्टेशन...
😜
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