मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
- अंजुम रहबर
अब हमें देख के लगता तो नहीं लेकिन
हम कभी उसके पसंदीदा हुआ करते थे
~जव्वाद शैख़
ये वहम जाने मेरे दिल से क्यूँ निकल नहीं रहा
कि उस का भी मिरी तरह से जी सँभल नहीं रहा
कोई वरक़ दिखा जो अश्क-ए-ख़ूँ से तर-ब-तर न हो
कोई ग़ज़ल दिखा जहाँ वो दाग़ जल नहीं रहा...
~अज्ञात
तुमसे मिलकर इतनी तो उम्मीद हुई है
इस दुनिया में वक़्त बिताया जा सकता है
- मनोज अज़हर
पसंद में आज भी तुम हो
बस बताने वाले में दम नहीं है..!!
वो चाहे जो कहे,
उसे मिला कोई हमसा नहीं है..!!
#आशा
हम अपनी जीत के क़िस्से भी सुनाएँगे कभी
अभी तो हार के अफ़साने बयाँ होने दो
- हरिओम
No comments:
Post a Comment
Please Feel Free To Comment....please do....