Thursday, September 25, 2025

नवाज़िशें

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
- अंजुम रहबर

अब हमें देख के लगता तो नहीं लेकिन
हम कभी उसके पसंदीदा हुआ करते थे
~जव्वाद शैख़

ये वहम जाने मेरे दिल से क्यूँ निकल नहीं रहा
कि उस का भी मिरी तरह से जी सँभल नहीं रहा 

कोई वरक़ दिखा जो अश्क-ए-ख़ूँ से तर-ब-तर न हो
कोई ग़ज़ल दिखा जहाँ वो दाग़ जल नहीं रहा...

~अज्ञात

तुमसे मिलकर इतनी तो उम्मीद हुई है
इस दुनिया में वक़्त बिताया जा सकता है

- मनोज अज़हर

पसंद में आज भी तुम हो
 बस बताने वाले में दम नहीं है..!!
वो चाहे जो कहे, 
 उसे मिला कोई हमसा नहीं है..!!

#आशा

हम अपनी जीत के क़िस्से भी सुनाएँगे कभी
अभी तो हार के अफ़साने बयाँ होने दो 

- हरिओम

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