गर तेरी मौज है मेरी जान
तो मेरे शब्दों में भी
छुपी एक खोज है मेरी जान
माना के तेरे मौन के आगे
मेरा ज्ञान है बिलकुल फीका
उठाता हूँ फिर भी जोखम
के ज़िस्त बस चंद रोज है मेरी जान
बात अच्छे - बुरे या
अधूरे - पुरे से परे है मेरी जान
बात ये है की...
बात कुछ भी नहीं है मेरी जान
कुछ भी तो नहीं है कहने को
और फिर भी कितना कुछ है बाकी
बातों में बस इशारे हैं
इश्क तो नहीं है ना मेरी जान
भीड़ में रह सको गर तनहा
तो लुत्फ़-ए-तनहाई है मेरी जान
लोग कर दें अगर तुम्हें बेकल
तो भी तो गम-ए-रुसवाई है मेरी जान
ख्यालों से ही गर तुम
हो जाते हो बेचैन
ज़रा मेरे बारे में भी तो
सोचो मेरी जान
ना भी कह पाया वो
जो कहना चाहता हूँ तो क्या
कमज़र्फ या हरजाई तो
नहीं ना कहलाऊंगा मेरी जान...
bahut bahut bahut badhiyaa
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