देखते हैं जो
इस क़ाएनात को
इसमें और उसमे बाँट-बाँट कर...,
दूर..
बहोत दूर..
बहुत ही दूर हैं
अभी वो सरकार-ए-दो-आलम से..!!
क्यों करते हो
यों फिजूल ही
उसे भुलाने की कोशिशें..??
हर ज़रिया जब
वो नाकाम रहा
तुम्हें खुद की याद दिलाने में..!!
पूछते हैं वो मेरा हाल
यूँ घबरा-घबरा कर...,
डरते हैं..
कहीं में ये ना समझ बैठूं
की उन्हें मुझसे महब्बत है..!!
हमने तो बस..
एक ही दौलत है कमाई,
गीन सके ना कोई
ऐसी रहमत है पाई,
ना श्रम किया
ना किया परिश्रम,
बस शीश दे अपना
सारी कीमत है चुकाई..!!
उपयोग करूँ तो होती जग-हँसाई..
इकतरफा मोहब्बत में वो मजा नहीं,
जो लुत्फ़ है इकरार-ए-यार में..,
शायद इसी लिए..
बिखर गया वो बनकर क़ाएनात..!!
जानता था वो बखूबी..
की इस तरह तो बिखर जाएगी मोहब्बत भी..,
मजा जो मगर बिछड़ कर मिलने में है,
वो लुत्फ़ कायम-पहलु-ए-यार में नहीं..!!
लूटेरा है वो
बखूबी जानता है
क्या लूटना और क्या नहीं...,
छीन लेता है
वो शय जो तुम्हारे रूह में बसी,
छोड़ जाता है
वो, जिसकी तुम्हें ही इज्ज़त नहीं..!!
इन मंदिरों-मस्जिदों
इन सजदागाहों में
खुदा घर नहीं
ऐसा भी नहीं...,
है मगर जहाँ
खुदी खुद से बाबस्ता
और
खुदाई खुद से जुदा
हरगीज वहां खुदा नहीं..!!
हार-जीत के पार भी है एक जहाँ,
सतही निगाहों से मगर नज़र आते दो जहाँ,
ज़िन्दगी ना अजीब लगे
ना ही लगे कोई चक्कर,
दो जहां के बीचों-बीच हो जिसका मकां..!!
कोई किसी से बेहतर नहीं है यहाँ,
हम्माम में तो सभी नंगे हैं यहाँ...,
सवाल मगर ये के हुआ शर्मिंदा कौन..??
अब आपसे क्या छिपा है भगवन,
अपनी तो सूरत क्या..
सीरत भी डरावनी है यहाँ..!!
हम-तुम जो फ़ना हुए,
तो पूरी होगी मंशा...,
तेरी-मेरी नहीं,
ये तो है साईं की इंशा..!!
ज़िन्दगी देकर
सब-कुछ तो दे डाला है
मुझे मेरे महबूब ने...,
दुनियावालों की नज़रों में मगर
ज़िन्दगी ये मेरी ज़िन्दगी नहीं..!!
ज़िन्दगी ये मेरी ज़िन्दगी नहीं..!!
पूछते हैं वो मेरा हाल
ReplyDeleteयूँ घबरा-घबरा कर...,
डरते हैं..
कहीं में ये ना समझ बैठूं
की उन्हें मुझसे महब्बत है..!!
bahut hi badhiyaa