Sunday, April 3, 2011

रिश्ते-नाते


मेरी माँ
मुझे एहसान फरामोश कहती है
क्योंकि..
मैं वो सपूत ना बन पाया
जो उसने पैदा किया था रामनवमी के दिन...
एहसान जो उसने मुझपर किया
उस एहसान का क़र्ज़ मुझपर अभी बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्यों ना उसने कोई अम्बानी या तेंदुलकर पैदा किया..??

मेरे पिताजी
मुझे सफेदपोश ज्ञानी समझते हैं
क्योंकि..
मैं वो नहीं कहता
जो वो ठीक समझते हैं...
ब्रह्म ज्ञान जैसा उन्होंने मुझे समझाया
उस ज्ञान का भ्रम अभी मुझमें बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्या उन्होंने मुझे वो ही नहीं दिया
जो विरासत में उन्हें उनके पिता से मिला..??

मेरी श्रीमती
मुझे जिस्मफरोश जानती है
क्योंकि..
मैं वैसा पत्निव्रता ना रह पाया
जैसी पतिव्रता वो खुद है...
प्रेमी बन उसे ठेस है पहुंचाई
उस ठेस का दर्द अब भी मुझमें बाकी है...
सोचता हूँ कई बार में मगर
की
इस भरे-पुरे संसार में
कमसकम एक पुरुष तो ऐसा वो मुझे दिखा देती
जिसने अपने ख्यालों में भी परनारी को ना छुआ हो..??

मेरी बहन
मुझे एक जिद्दी और असफल इंसान समझती है
क्योंकि..
मैं उन प्रतिभाओं का दोहन ना कर पाया
जो वो समझती है की मुझमें अकूत है...
उसकी अपेक्षाओं पर मैं खरा ना उतर पाउँगा
ये बतलाना अभी उसे बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्यों ना मैं उसके हिसाब से होनहार हो पाया..??

मेरी माशूकाएँ
मुझे बेवफा समझतीं हैं
क्योंकि..
मैं कुत्तों सा वफादार तो ना हो पाया
पर बात-बात पर उन्होंने मुझे कटखना जरुर पाया...
उनकी रूहें जो आज दर-बदर भटकतीं हैं
उन रूहों का भार अब भी मुझ पर बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्यों ना मालिक ने मुझे कुत्ता ही बनाया..??

मेरे दोस्त
मुझे खुदपरस्त मानते हैं
क्योंकि..
मैं उनके उतने भी काम ना आया
जितना दाम उन्होंने मुझ नाचीज पर लगाया था...
निवेश जो उन्होंने मुझ पर किया
उस निवेश का उधार अभी मुझ पर बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्योंकर ना उन्होंने एक बुत को दोस्त बनाया..??

मेरे भाई
मुझे बहुत छोटा समझतें हैं
क्योंकि..
मैं उनकी नज़र में वो छोटा हूँ
जो कभी बड़ा ना हो पाया...
उनके बड़प्पन का में समुचित आदर ना कर पाया
इसका छोटापन अब भी मुझमें बाकी है...
सोचता हूँ कई बार मैं मगर
की
क्यों ना उनका बड़प्पन किसी के भी काम आया..??

मैं ही वो कलयुग का रावण हूँ शायद
जो जलने को रामनवमी के दिन पैदा हुआ...

मैं ही वो स्वामी हूँ शायद
जो कपट से पूर्ण है...

मैं ही वो नवाब हूँ शायद
जिसका हरम औरतों से भरपूर है...

मैं ही वो कंस हूँ शायद
जो अहम् से चूर है...

मैं ही वो यार हूँ शायद
जो नशे में मगरूर है...

मैं ही वो भारत हूँ शायद
जो पद, नाम, लोभ से ग्रसित है...

पर सवाल ये है शायद
की आप क्या हैं जनाब..??


आप कहीं कृष्ण तो नहीं..
या फिर राधा..??






Man is bad case....isnt it?

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