साधु आरम्भ है और संत अंत ..!!??
ये क्या गजब कहत हो तुम पंडित जी ..!!??
की हमरे मौला तो कहत हैं हमसे
की:
जो शुरूआत का ही खुद में कर ले अंत वो है संत ...
उलझ गयी है अब आपके ख्यालों से हमारी इ कैसेट अब पंडित जी
किरपा करी के सुलझाइ दो अब आप ही हमरा पंथ जी ...
अंत-अनंत की बात करत हैं हमरे कबीर दास जी भी
कहत हैं वो की:
"हद-हद जाए हर कोई
अनहद जाए ना कोई
हद-अनहद के बीच में
रहा कबीरा सोई"
और ये भी की :
"साधु कहावत कठिन है
लम्बा पेड़ खुजूर
चढ़े तो चाखे प्रेम रस
गिरे तो चकनाचूर"
परमात्मा की धारा
परमात्मा ही तो जानत है ना पंडित जी ..??
या फिर आप भी हम दुराचारी भक्तों की तरह
पढ़त-पढ़त करन लगे हो परमात्माइ नीयतों की स्वयंभू पढंत जी ..??
हम ना साधू, ना हम संत
ना ही हमका आवत है भिन्न-भिन्न प्रकार से करना ओ की रटंत जी ..??
हमरा पागल मनवा भला क्या जाने
की कैसे होत है परित-विपरीत की चोमुखी गीनंत जी ..??
किरपा करो विजयी_शंकर में से मे_हता कर महाराज
करबद्ध हो याचनापूर्ण अर्चना करत है ये त्रुटिपूर्ण दिनंत जी ..??
सुन लो महाराज
सुन लो हम गुलाम वारसियों की ये सद्भावनापूर्ण की गई विनंत जी ..!!
।। जय जय सदचिदानंदमयी माँ अनंत जी ।।
Man is bad case....isnt it?
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