अपने ही समाचार पत्र में छपे
आज के गांधीवादी 'सुविचार' को पढ़े बगैर ही उठा बैठे
राष्ट्रीय सम्पादक जी अपनी दोधारी कलम और तलवार
कल्पनाशील कलप को पेश करते चले गए कल्पेश जी समझ के पलटवार
अपनी ही आधुनिकता की आग में जलते गए याग्निक जी इस गुरूवार
पद, सिमित ज्ञान और उत्तेजना के आवेश में इतना तक भूल गए ये भास्करी सरकार
की चंडिका माताओं और बहनों को किसी से भी तलवार मांगने की कतई जरुरत नहीं
वे आदि-शक्ति देवी हैं और हैं वें भी सृजनहार
उन्हें भी बनाया गया है मानव जाति का पालनहार
हर पल शिव-शक्ति का है उनमे समावेश प्रयोजन अनुसार
जरुरत है अगर ... तो बस इतनी ही की
खुद को जगा लें वें आत्मज्ञान और आत्मविश्वास के साथ
चाहे फिर बदलना पड़ें उन्हें कितने ही भेष
हौसले के साथ उठाये गए उनके हर कदम में साथ होंगे श्री गणेश
कानून और सजा के डर से सुधर सकता अगर ये सामजिक गणतंत्र
तो ना जाने कब से हो गया होता हर गण दरवेश
बाँध लो तेजस्वी जुड़े में ये सांवल-सांवल केश
तुम्हारी ध्यानस्थ नज़रों के ओज से छुप नहीं सकता कोई भेद
मादा जाति को नहीं ये किसी आदम का उपदेश
पढ़ सको तो पढ़ लो की ये तो है बस एक मूल सन्देश
ठीक उसी तरह जैसे कह गए हमसे प्रेमवश दास कबीर की:
ज्यूँ तिल माहि तेल है
ज्यूँ चकमक मा आग
तेरा साईं तुझमें बसा
जाग सके तो जाग
जय जय माँ दुर्गेश नंदिनी
जय जय माँ दुर्गेश
जय जय माँ दुर्गा
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