इन हसीनाओं को...
Man is bad case....isnt it?
और
लापता हो चुके दीवानों को...
बला का हुस्न बक्शा है कुदरत ने
इन हसीनाओं को
शबाब ही नहीं शराब से भी नवाजा गया है
इन हसीनाओं को
'उसने' तो
दिल ही दिल बनाया था इन्हें
जाने कौन मनहूस घड़ी लग गया अक्ल का चस्का
इन हसीनाओं को...
जानता हूँ
बाबा आदम के ज़माने में
चखा थे इल्म का एक सेब हव्वा ने
जरुरी नहीं मगर
इस बोझ को सर पे उठाये रखना
हाय मगर !
कौन ये राज खोलने की हिमाकत कर सकता है 'आज'
इन हसीनाओं को...
गेसुओं का बाँकपन
मिला था दिल धड़काने को
उलझाना इनमें जाने किसने सिखाया है
इन हसीनाओं को...
ललाट था जो लाली से भरा-भरा कभी
आज उतर आया है खून इसमें
माथा ठनकते ही देखो तो
दे गया कैसी नामुराद सलवटें
इन हसीनाओं को...
मटकती ये आँखें, मदभरे ये नैन
आज भी ठहरा देती है साँसों को
उठाती हैं जो अब यें तीर-ओ-तलवार
क्या चंचल चितवन काफ़ी नहीं थी
इन हसीनाओं को...?
सूंघ ले जो बदनियतों को दूर से ही
कुछ ऐसे बक्शे गए हैं नाक-नक्श इन्हें
इतना नाकवाला
फिर किसने है बनाया
इन हसीनाओं को...?
है इन्हें मुहैय्या
कातिलाना तो खैर थी हीं
पर कातिल किसने बनाया
इन हसीनाओं को...?
सुराहीदार ये गर्दन
थी कभी गाफ़िल कंठ की प्यास बुझाने में
अकड़ी कुछ इस तरह मगरुरी में
के बुत बना रख छोड़ा है 'आज' इन्होने
इन हसीनाओं को...
नाजुक ये कंधे
कभी बने ही नहीं थे
दुनिया का बोझ उठाने को
जाने किसने दे दिया मगर
ये तख़्त-ओ-ताज का जूनून
इन हसीनाओं को...
ये गुदाज बदन, ये मरमरी बाहें
और ये तराशा हुआ जिस्म
सबकुछ तो था नसीब
मलिका-ए-जहाँ बनने के लिए
दिल ही मगर बैठा जाता है अब आशिकों का
देखकर इन गुस्सैल हसीनाओं को...
सिसकती है जो आज छुप-छुपकर
अपनी ही महत्वाकांक्षाओं की आग में
नेहाओं की इस नेहा से अब कौन बचाएगा
इन हसीनाओं को...
जाने कब गले उतरेगा
इन हसीनाओं के दिल में
ये अदना सा सच
के यूँ पौरुषीय हो जाना
बिलकुल भी शोभा नहीं देता
इन हसीनाओं को...
और ना ही कोई मर्दानगी छिपी है मर्दों की
किसी नारी का रूप-श्रृंगार धरने में
धिक्कार करने में
बलात्कार करने में
या
ये सच स्वीकार करने में
की
नर भी ठीक उसी तरह अधुरा है नारी बिना
जिस तरह नारी अपूर्ण है नर बिना
जरुरत है तो बस.,
आत्मीय मिलन की
प्राकुर्तिक संतुलन की
आनंदमयी जीवन जीने के लिए ...
अश्लेशा तेरा अवशेषों की
मेघा तेरे मेघों की
और
रोहिणी तेरे ग्रहण की
कसम है हमें
करेंगे ना सिर्फ इल्तज़ा ज़िन्दगी से
बल्कि करम भी कुछ ऐसे इस ज़िन्दगी में
की
नाज़-ओ-अदा से जीना सीखा दे
फिर से हमें कोई कृष्ण
वो मीरा वाला पाक-साफ़ इश्क
वो राधा प्यारी का प्रेमपूर्ण रक्स
इन हसीनाओं को...
वो कृष्ण वाली मासूमियत से भरी रास-लीला
हम दीवानों को...
फिर रोशन कर ज़हर दा प्याला
चमका नई सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को
ताबानी दे मौला !!
फिर मूरत से बाहर आकर
चारों और बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा
दीवानी दे मौला !!
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