Wednesday, February 27, 2013

कहना गलत गलत तो छुपाना सही सही...say wrong wrong hide right right...

पंडितजी उवाच 

आप कहते हैं तो मानी लेते हैं पंडितजी 
की 
दुनिया परमात्मा का घड़ा है 
इंसान जिसमे इल्म का सेब खाकर खड़ा है 
कर रहा आबे जम जम को वो नापाक अपनी करतूतों से रोज़  
मनवा उसका परम पूज्य परमात्मा से भी लेकिन बड़ा है 

दुःख से बचना तो वो चाहता है 
पर सुखों की फरमाइश पर वो अड़ा है 
चुनता है वो सिर्फ संसारी घड़े को 
परमात्मा तो जैसे उसके मुहँ बाएँ खड़ा है 

रचा था मनु को/आदम को उसने पुतले की ही तरह 
पर
फिर फूँक दी अल्लाह ने उसमे अपनी ही जान
क्या करता ..?? 
की 
मोहब्बत का जज़्बा कई पोथियों से बड़ा है

जानता था वो खुदा 
की दूर कर रहा है वो खुदी को खुद से 
रचकर ये बेइन्तहा खुदाई 
मालुम था उसे ये भी मगर 
की होगा जो भी उसका सच्चा आशिक़ 
फिर एक हो जाएगा वो उसी से किसी दिन
ना हुआ जो तो क़यामत तक वो 
इस मायावी घड़े में बस सड़ा ही सड़ा है  

दीन-ओ-ईमान की राह पर चलने वालो को 
बक्शा है उसने वो इश्क-ओ-जूनून
जो किसी भी पूजा या नमाज़ से जियादा 
हैरत अंगेज़ और रूहानी सिलसिला है

मज़ा जो बिछड़कर मिलने में है 
वो क़ायम सदा पहलु-ए-यार में नहीं
की हुआ तुम्हारे दिल को कभी किसी से प्यार ही नहीं 
खाते रहे तुम बस इल्म का सेब 
जान-ए-जान में आया तुम्हे कभी लुत्फ़ ही नहीं 

तुम क्या जानो पंडित/मौलवी 
की ये दिल की लगी होती है, होती कोई दिल्लगी नहीं
देख-सुन लो ये नुसरत फ़तेह अली खान साहब की रूहानी क़व्वाली 
की तुम्हे दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी 
मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो

आका मिलेंगे तुम्हे वहाँ 
रूमी होते है शायर जहाँ 
जो यूँ ही नहीं कह गए की  
सही-गलत (सुख-दुःख) के पार आकर तो देखो

ज्यूँ की त्यूं  धर देनी पड़ती है चदरिया जहाँ 
ना कोई परमात्मा और ना कोई घड़ा होता है वहाँ
गंगा जल या आबे जम जम का भी बस यूँ समझिये 
की तसव्वुर के आलम में बस एक ज़िक्र-ए-लबरेज़ होता है वहाँ 

क्या क्या बताएँ, कितना बताएँ और क्यूँकर बताएँ हम 
की 
ना हम होते हैं ना तुम होते हो वहाँ
होता है बस 
प्यार ही प्यार
बस प्यार 
बस प्यार, बस प्यार, बस प्यार 

Listen and watch this too
with love
Man is bad case.... isn't it?

Tuesday, February 26, 2013

Unpublished till now...अब तक अप्रकाशित


अब तक अप्रकाशित


यह कहानी नहीं अपितु एक सत्य घटना है। 

ये किस्सा तब घटा जब हमारे पंडितजी महज एक पत्रकार ही थे। जड़मति कह लीजिये, मुर्ख कह लीजिये या मूढ़ कह लीजिये पर इन सब रत्नों से सुसज्जित तो ये पत्रकार महोदय तब भी थे और अब भी हैं। उधार का ज्ञान बाँट-बाँटकर आप अज्ञानियों द्वारा ज्ञानी या पंडित जरुर कहलाये जा सकते हैं पर पांडित्य को सचमुच अमल में लाकर पल-पल सद्चितानंद जीवन जीने के लिए ना केवल
बुद्धि,
रिद्धि-सिद्धि,
चिंतन-मनन,
ज्ञान-ध्यान,
भक्ति-शक्ति,
काम-क्रोध-मोह-माया-अहंकार के अन्धकार से निजात पाने की गुरु-कृपा,
चाह से, मनोकामनाओं, महत्वाकांक्षाओं से, इच्छाओं-अभिलाषाओं से भरे मन से मुक्त होने की कला,
इश्क-ओ-जूनून,
दीन-ओ-ईमान,
नेकी की राह पर चलने के लिए नूर-उन-लला की दरकार होती है बल्कि इन सब से भी ज्यादा
एक पाक-साफ़ नियत,
एक निर्मल ह्रदय,
एक प्रेमपूर्ण आत्मा,
एक हास्य-विनोद से परिपूर्ण चित्त,
एक सहज सहिष्णुता का सौन्दर्यपूर्ण भाव,
एक सत्यनिष्ठा से लबरेज कर्त्तव्य परायणता भी मुलभुत स्वभाव का अंश होना जरुरी होती है।

जीवन प्रबंधक बनकर या उधार के ज्ञान को निपुणता से अपनी वक्तव्य शैली का लोकलुभावन इस्तेमाल करने से कोई विजयी या सफल तो हो सकता है पर स्वयं की अनुभूति ना होने का ज़ख्म तो सदा ही धिक्कारता रहेगा अपनी चाणक्य नीतियों पर चलने वाली चालाकियों को। भीतर का खोखलापन भी यकायक ही अपनी मूढ़ता के दर्शन, गालिबन या बातिमन अंदाज़ में बार-बार ज़ाहिर करता ही रहेगा।

फिर कोई ना कोई परमात्मा का संदेशवाहक, नाई के रूप में आकर ना केवल आपको आपका असल चेहरा आपके ही मन-दर्पण में दिखलायेगा अपितु आपकी केश-सज्जा, मैनीक्योर, पेडीक्योर, सर की चम्पी, तन की मालिश भी कभी ना कभी जरुर करेगा ही। ठीक वैसे ही जिस तरह उस दिन एक कैसेट-cd शॉप की मालकिन, जो की इन मूढ़ पत्रकार महोदय की नापाक नजरों में मात्र एक सेल्स गर्ल ही थी, ने अख्तियार किया था।

हुआ ये की शहर में सिर्फ और सिर्फ असली कंपनियों की कॉपी राईट प्राप्त कैसेट/cd का विक्रय करने वाली एक दूकान खुली। अब इन नकली पत्रकार महोदय ने अपने आतंरिक नकलीपन के चलते अब तक केवल नकलचियों को ही सफल होते देखा-समझा था तो वो असली कैसेट/cd में से अपने पसंदीदा गीतों/फिल्मो को चुन-चुनकर भरने-भरवाने, रिकॉर्डिंग/downloading/ करने-करवाने वालों को ही अपनी अज्ञानता और मुर्खता के चलते एक सफल धंधा समझते थे। तो इन तात्कालीन bureau चीफ को ये विशवास ही नहीं था की ईमानदारी की राह पर चलने वाली दूकान भी भ्रष्ट भारतीयों की भ्रष्टतम व्यवस्था और सरकार के होते हुए भी चल सकती हैं। ये एक ऐसा विशाल प्रश्न, धारणा या यूँ कहें की संदेहग्रस्त वाचाल बुद्धि की मूढ़ता थी जो इन पत्रकार महोदय से सेल्स गर्ल से ये पूछने की भूल करवा बैठी की : "मेडम ! ये दूकान चलती भी है या नहीं?"

मेडम की जिंव्हा में भी उस दिन जैसे परमात्मा रूपी सरस्वती देवी शास्वत थी जो सहसा उनके मुख से ये कह गयी : "आप होते कौन है हमसे ये पूछनवाले? और कर क्या लेंगे आप ये जानकार भी? आप तो बस इतना जान लीजिये की प्रभु ने कभी हमें आप जैसे निकृष्ट लोगों से भीक नहीं मंगवाई है। आपसे हम कभी कुछ मांगने आये क्या?"

इतना सुनते ही पत्रकार महोदय के तो जैसे होश ही उड़ गए। भाव-भंगिमाएं क्रोधित हो उठी और आत्मा शर्मसार हो दूकान से तुरंत कूच कर गई।

बाद में इन ब्यूरो चीफ पत्रकार ने अपने बहुत सारे नुमाईंदे, संवाददाता, चेले-चकोले, आदि-आदि नकली के ग्राहक बनाकर इस दूकान की हकीकत जान्ने के लिए भेजे पर साँच को आँच कहाँ और पनिहारन को साज़ कहाँ?

बहुत सारी शर्मनाक चालें चली फिर इन साहब के व्यथित अहंकारी मन ने पर सत्य को परेशान किया जा सकता है पर पराजित नहीं किया जा सकता। कदापि नहीं - चाहे आप कितने ही बड़े दैनिक भास्करी विजयी शंकर क्यों ना हो।

सत्य मेव जयते।

शायद अब भी यही हाल है इन तथाकथित पंडित जी का क्योंकि अब भी स्वयं की कोई रचना ये आज भी नहीं कर पाते हैं। बस कभी ओशो तो कभी अवधेशानंद गिरी महाराज या कभी कोई पतंजलि के सूत्र या फिर किसी विवेकानंद की असल टिप्पणियों के आसपास अपने नकली संसार की रचना करते रहते हैं। इतने वर्षों पश्चात भी ये महोदय वहीँ के वहीँ वाचं, मुखं, पदम् स्तंभित ही होकर रह गए हैं। जिंव्हा का किलय हो चूका है और कलुषण भी। बुद्धि का तो जैसे विनाश ही हो चूका है।

अल्लाह ही मालिक है, रहमान है, मेहरबान है, करतार है, दयानिधान है, कृपालु है ऐसे मुर्खा दे मुखादेपतियों का।

रहम करो या वारिस
करम करो या वारिस
के ये वक़्त-ए-रहम है, ये वक़्त-ए-करम है मेरे दाता

आमीन, आमीन , सुम-आमीन।
Man is bad case.... isn't it?

Tuesday, February 19, 2013

Infected Mushroom - I Wish (Original)



Man is bad case....isnt it?

I AM INSANE - हाँ मैं पागल हूँ

हाँ मैं पागल हूँ 
तेरे इश्क में 

हाँ मैं दीवाना हूँ 
सरे महफ़िल में 

क्यूँ है तुम्हें मुझ सनकी से 
समझदारी की उम्मीद 

हाँ मैं बेअक्ल हूँ 
बरे अक्ल इस जहाँ में  

बर्खास्त कर दो तुम
 इस सरफिरे को 
अपनी जन्नत से

हाँ मैं खिस्केल हूँ 
तेरी स्केल में

गुनहगार हूँ मैं तेरी नज़रों में 
अज़ल से 
निकाला गया हूँ मैं 
बहिश्ते पाक से 

हाँ मैं दोजखी हूँ 
तेरी क़ाएनात में 

फ़ना कर दो तुम 
मेरे वजूद को
हमेशा - हमेशा के लिए 

हाँ मैं मुन्तजिर हूँ 
और रहूँगा ऐसा ही 
अपनी कब्र में भी

हाँ मैं तड़पता रहूँगा  
तेरे दीदार - मदार के लिए  
क़यामत से क़यामत तक

बोल तू आएगा या फिर तू आएगी
बता किस हाल में है तू 
कौन है तू 
कहाँ है तू 

A dupla israelense Erez e Duvdev (Infected Mushroom) acabaram de lançar seu primeiro single, "Becoming Insane". Prometido também para este ano o laçamento do 6º album, "Vicious Delicious".

No me acuerdo lo que paso
Ni me di cuenta ni que me pico
Todo da vueltas como un carrusel
Locura recurre todita mi piel

Wake me up before I change again
Remind me the story that I won´t get insane
Tell me why it´s always the same
Explain me the reason why I´m so much in pain

Before I change again...
Remind me the story that I won't get insane
Before I change again...
Remind me the story that I won't get insane

Insane(5x), I'm Becoming Insane!!!

 http://youtu.be/Z6hL6fkJ1_k

 http://youtu.be/82N3iOVoR54
   



 Man is bad case.... isn't it?

Friday, February 15, 2013

My kinda Love....


HEIGHT OF FLIRTING:

My Valentine Day Love Letter starts with.....

"To Whomsoever It May Concern.....

R _ _ _ _ a _ _ r _ _
V _ _ _ _ _ _ a _ _ b _ _ _ 
A to Z is my love & Yes its true
I L U

Yup; its a LOVE 
with;
No language, No gender, No caste-ism, No tribe, No nationality, No age limit, No religious barrier, No trend, No traditional obstacle, No pathetic rules, No hypothetical diplomacy, No critical hypocrisy,limitless, unconditional..........


LOVE for one's own country is a splendid thing; but why should this LOVE stop at man made borders?

Similarly,

LOVE for ones own caste, color, creed, 
religion, faith, belief, 
name, fame, status, 
nation, language, tweet is great;
but Why can't this LOVE cross all the barriers 
&
go on & on & on beyond thinking mind?
can we not loose all sense of man made divisions
&
LOVE All IN ONE?
can't we just have a sense of 'cosmic consciousness'
&
be a loving fool?
Oh yes...tell me frankly, candidly, plainly
that just by HOPING so
i have proved
that;
i am indeed a FOOL !!
  
Man is bad case....isnt it?

Issue of right of expression, law and society मामला अभिव्यक्ति और क़ानून का

प्रिय मधु किश्वर जी,


मामला क्या है, कैसा है, कितना है, किसका है, स्वतंत्रता का है, स्वछंदता का है, हुल्लड़ बाजी का है, मानसिकता का है, या जैसा है वैसा है - बस 'है' , ये तो बस परम्पूर्ण इश्वर ही सम्पूर्णता से जानते हैं। हो सकता है की आपको भी उनका अंश होने से आंशिक रूप से 'सत्य' का ज्ञान/भान हो जो की 'दैनिक भास्कर' के सम्पादकीय पृष्ठ पर आपकी अभिव्यक्ति के रूप में छपे आपके आज के विचारोत्तेजक लेख "मामला केवल बोलने की आज़ादी का नहीं" पढ़कर ज्ञात होता है। सबकुछ भली-भाँती और नेकी की नियत से लिखा हुआ होने बावजूद भी आपका लेख अन्तत: केवल स्थिति को और अधिक उलझाने में ही सफल होता है बजाये सुलझाने के। ठीक भी है की हम सबको अपनी-अपनी उलझने स्वयं ही सुलझानी होती हैं।

किसकी भाषा क्लिष्ट
किसकी अभिव्यक्ति बाधित 
और 
किसका सम्प्रेषण दूषित?
हमको नहीं पता
हमको कूऊऊऊछ नहीं पता ...
और
थोडा-बहुत पता अगर कुछ भी हो 
तो 
फैसला करने वाले हम कौन?
क्या ये हक हमें हासिल है?
गालिबन 
बस एक तमाशा है 
जो देखते हैं हम बस एक तमाशबीन बन   
 इस बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल में 
होता है शब्-ओ-रोज़ एक तमाशा हमारे आगे 
अपनी-अपनी दृष्टि, डॉक्टरेट या मर्म के मुताबिक !!

अब जीने की राह दिखाने वाले पंडित विजयशंकर मेहता जी को ही देखिये ना। उन्हें शायद ये पता ही नहीं है की मीनोपॉज के बाद महिलाओं को हुए हार्ट अटैक की संख्या में किस कदर इजाफा होता है। ठीक भी है जो पंडित जी दिल से बहे आंसुओं को महज खुद को हल्का करने की एक कसरत भर समझता हो वो दिल की लगी को दिल्लगी ही तो समझेगा। उसे क्या पता की हो सकता है की परमशक्ति भी संसार की ऐसी नामाकुल हालत देख संसार के जगत कल्याण की आस में एकांत में रुदन करती हो।

प्लेटो जी ठीक कह गए है की "अगर इंसान शिक्षा की उपेक्षा करता है, तो वह लंगडाते हुए अपने जीवन के अंत की तरफ बढ़ता है।"

फिर एक तमाशा और देखिये जो प्रभु की भोजशाला में और भी पैनी कर रहा है अपनी दोमुखी तलवार की स्वयंभू धार। सूखी खांसी से खडखड़ा रहे, जाने किस बात पर शंकराचार्य कहलाये जाने वाले ये तथाकथित नरेन्द्रनाथ सरस्वती जी, शंकर द्वारा स्थापित 'अद्वैत' को जाने-समझे बगैर बस लगे हुए हैं प्रशासन को डराने-धमकाने में इश्वर का फकत नाम ले लेकर अपना खुद का कुप्रशासन स्थापित करने में। अब इश्वर कोई आतंकवादी तो नहीं जो सरेआम इन नरेन्द्रनाथ जी को अर्ध-नग्न दिखा कर x-ray करवा रहें हैं। शायद वो इन साहब को कह रहे हैं की रुक जा, संभल जा, नेकी का, दिन-ओ-ईमान का, मोहब्बत का, सुकून का रास्ता अख्तियार कर ले ऐ बन्दे की हम देख रहे हैं सबकुछ जो चल रहा है तेरे दिल-ओ-दिमाग में। सब कुछ वही हुआ है अज़ल से, जो हमने चाहा है, वही हो रहा है जो हमें है मंजूर और वही होगा जो हमें है कबूल। तेरे किये-कराए, तेरी मंशाओं से, तेरे नापाक इरादों से, तेरे धरम-करम से, तेरे धर्मानुअन्ध होने से तू सिर्फ फसाद की जड़ बन रहा है। जाने कब इन्हें माँ सरस्वती सत्यनिष्ठा का, सच्चरित्रता का, सहजता का मार्ग दिखा कर इस आनंद और उत्सव के मार्ग पर चलने की रौशनी देगी? हम तो बस ये दुआ कर सकते हैं, ये प्रार्थना कर सकते हैं की इन साधुओं, संतो, पंडितो, मौलवियों को रौशनी का ये वरदान जल्द से जल्द प्राप्त हो। जगत का कल्याण हो।

रही बात आपकी मधु किश्वर जी, तो हम ये निवेदन करेंगे की आप खलील जिब्रान द्वारा रचित/लिखित THE PROPHET पुस्तक का ध्यानस्थ हो एक बार फिर से अध्यन करें। ख़ास तौर से LOVE, LAW, CRIME & PUNISHMENT वाले chapters का ताकि आप इस उलझाव से मुक्त हो समाज के सामने सुलझाव का मार्ग प्रशस्त कर सकें।

आपकी सुविधा के लिए ये पुस्तक e-book format में इस नाचीज की अदना सी समझ के साथ इस link पर सहज उपलब्ध है

बन्दा आपका तहेदिल से एहसानमंद और शुक्रगुज़ार होगा अगर आप इस इ-बुक को आपके पढने लायक समझ खरीद सकेंगी।

ये एक छोटा सा तोहफा भी अपना कीमती वक़्त देकर कबूल कीजियेगा ...please 

Wednesday, February 13, 2013

RELYING ON ME, MYSELF AND MY THINKING.

प्रिय दैनिक भास्करियों,


एक वैष्णवी पंडित आज अपने ही नारायणी अवतार के सुदर्शनिय क्रोध द्वारा रचित, निहित, संभवित, फलित कई सारे द्वापर युग कालीन यदुवंशी युद्धों को अज्ञानवश या यूँ कहें की पंडिताई मूर्खतावश, अहंकार का तमगा दे गया।

अहंकार कभी मिटा नहीं सकेगा रे तू पीत पत्रकारिता जगत के विजयी पंडित ....की जो है ही नहीं उसे क्या ख़ाक मिटायेंगे हमरे भोले शंकर?

तू मैं हटा रे मेहता, मैं हटा ...तब कहीं जाकर शायद तुझे क्रोध के तल में जगत कल्याण के लिए गरल में विष होते हुए भी करुणा का असीमित भण्डार लिए त्रिपुरारी में बैठे दिख जायें तुझे भोले भंडारी। तुम्हारे हनुमान भी माता पार्वती के चरणों में भक्तिभाव में लीन हुए बैठे तुम्हे शायद दर्शन दे देंगे वहाँ। और ना दिखे तो समझना मत, बस जान लेना की दिव्य दृष्टि पाने की किस्मत नहीं तुम्हारी। तुम बस कल्पेषित याग्निकता से परिपूर्ण दिव्य भास्कर जगत में ही रहो ...शायद ये ही मनवांछित नियति तुम्हारी।

अपनी ब्रांडेड छवि के बारे में विस्तारपूर्वक या कल्पेषित याग्निक तुलनापुर्वक अगर और खुद को पढने की चाह हो तो मृणाल पाण्डे जी की आज की अभिव्यक्ति जरुर पढ़ लेने का समय निकाल लीजियेगा पंडित जी। या फिर अपने PA से कहियेगा आपके समस्त केवल उनका सिमित दृष्टिकोण व्यक्त करने को। सुना है की वो प्रवीणता के जैन हैं, शाह हैं।

joke:

एक बार नरेन्द्र मोदी जी की मुलाक़ात धीरुभाई अम्बानी जी से हुई। मोदी जी उस समय संघ के महज एक अदना से कार्यकर्ता थे और धीरुभाई एक उभरते हुए सितारे।
मोदी जी: सुना है आप कहते हैं की "बड़ा सोंचे, जल्दी सोंचे, आगे की सोंचे। विचारों पर किसी का एकाअधिकार नहीं।" क्या ये सच है?
धीरुभाई: जी हाँ, बिलकुल।
मोदी जी: पर हमारे नरेन्द्र नाथ उर्फ़ विवेकानंद जी तो कहते हैं की "लगातार पवित्र विचार करते रहें। बुरे संस्कारों को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है।" तो हम क्या करें? बड़ा सोंचे, जल्दी सोंचे, आगे की सोंचे या फकत पवित्र विचार करें?
धीरुभाई: तुम कुछ नहीं कर पाओगे जब तक के Reliance पर Rely या Invest नहीं करोगे अपना vote bank.
मोदी जी: करूँगा ही नहीं करवाऊंगा भी ....जरुर करवाऊंगा। प्रॉमिस छे।
धीरुभाई: ते डील पक्की। तमे प्रधानमन्त्री बनवाई ने ही छोड़ेगा रिलायंस परिवार नो बच्चो-बच्चो।

           
THE TRUTH THOUGH IS BEYOND THINKING IN JUST WATCHING OUR THOUGHTS IN A MEDITATIVE NO-MIND STATE.
Man is bad case.... isn't it?

Friday, February 8, 2013

Hats off to you dear Sir...

Dear Sardesai Rajdeep,


Overwhelmed with pleasure to read your article  "बदलते दौर के बीच मीडिया की फिसलन" published on editorial page of "Dainik Bhaskar" newspaper as your expression or अभिव्यक्ति as db group terms it, regarding Society & Media.

I hope that the print media does not foolishly consider or tag your article written just for electronic media and for the anchors/news readers/correspondents/reporters/photographers/camera men/assistants/behind the desk staff involved in presenting the news. To me, your article is an eye-opening article for not only entire journalist faculty but also entire society involved therein.

I wish that your article along with Pandit Vijayshankar Mehta's article "परमात्मा से जोड़ें फकीरी का अंदाज़" published on same page under your article in 'जीने की राह'column, as also article titled "गुरु के वचन सुन निर्भीक हुआ राजा" published in 'जीवन दर्शन' column are made a must must must read articles for all and sundry but especially so for all the desiring and current journalists.

This, more so, when the so called saints of this nation are singing Narendra Modi type of third-class communalism songs in a Mahakumbh and egoistically feeding on non-secular, divide & rule, self-violence threats in God's own Bhojshaala. 

I simply fail to understand few things:
  1. Who made them saints?
  2. How can they dare to even divide Supreme Power into Hindu/Muslim/Sikh/Isaai God or religion?
  3. Is not namaaz a pooja?
  4. So what, even if the styles are different? Is not the intent the same to pray The Almighty?
  5. Is it not some kind of a huge, well-planned terrorist attack on Dhaar & Madhya Pradesh Government? 
Can someone please help me understand the philosophy or business or hidden agenda behind these cohesive issues? 

Saturday, February 2, 2013

INFLAMMATORY INFLATION BLUES !!

INFLAMMATORY INFLATIONARY BLUES:

कल्पेश जी की सटीक टिप्पणी का स्फटिक जवाब

oh my फटिक चार्ली चार्ली
तूने दिल की बाजी मार ली
फाड़ के रख दी तूने आज बाखूबी से
सोचते हैं हम मुफ़्ती मोहम्मद सईद बनके
की क्यूँ मुफ्त में मिलता नहीं ये जगत हमें हे भगवान्
महंगाई कड़कती है हमपर अनुष्का की अनुकम्पा बन
बस एक बिजली ही कहती है हमें oh my डार्लिंग डार्लिंग

हमारा डीजल
तुम्हारा डीजल
हमारी गैस
तुम्हारी गैस
राज्य शुल्क
राष्ट्र शुल्क
भ्रष्टाचारी मुल्क
सदाचारी मुल्क
हमारी सरकार
तुम्हारी सरकार
हमारा भारत
तुम्हारा इंडिया
हमारा ये ...ये ...ये ...
तुम्हारा वो ...वो ...वो ...
कब तक बाँटता रहेगा हिस्सों में हमें कमलेश
कब तक करता रहूँगा में हिज्जे तेरे नवनीत
कब तक हमारा तुम्हारा करता रहेगा ये मूर्खाधिपति 'दैनिक भास्कर'
कब सीखेगा असल भास्कर की तरह
सबको समानता की नज़र से देख
समान प्रेम का समान अधिकारी जान
सबको अपनी दुधिया रौशनी से एक समान नहलाना
कब तक रखोगे तुम 'रमेश'
ये कल्पेश याग्निक जैसे चाटुकार नौकर-चाकर
मानता हूँ की ये चतुर चाणक्य
रोज तुम्हारे मन अनुसार मन मुआफिक बातें कर
लुभाते हैं तुम्हारे दिल को
जानता हूँ की लोक-लुभावनी, चिकनी-चुपड़ी बातें कर
तुम्हारे अहंकारी मन को करवाते है ये स्वार्थ-सिद्धि के योग
देखते हैं हम भी
की देखें बकरे की माँ कब तक मनाती है खैर
My dear readers...
Please do read pandit Vijayshankar Mehta ji's article along with Dr Vaidik Prataap's article
viz a viz
Kalpesh Yaagnik's article against impossible truth
to get my possibly impossible clue.
It might help you to get over this inflation blue

please also visit manisbadkase.blogspot.com
 
and do read post titled उफ़ ये महंगाई  http://manisbadkase.blogspot.in/2010/03/blog-post.html
to happily deal with current inflationary inflammatory scenario

Man is bad case.... isn't it?

Friday, February 1, 2013

Harsh Hardtalks to core Indians

Respected Harsh Mander ji,

Kudos to you, Smita Jackob, Asgar & your team for surveying the fact & factual numbers of death, its reasons, its turmoil, etc etc etc. I am shivering just to feel the amount of efforts you & your team put up to not only know the fact but also to find solutions from such a pathetic state. 

This, when we face bookers or intellectual twitters keep on taking immense pleasure in updating our own social status or are busy in tweeting our minds terribly noisy voice.

Thank you very much for sharing your work and your inner voice of conscience with all and sundry through your eye-opening article in today's & on editorial page of today's Dainik Bhaskar newspaper.

It is because of such truly leadership journalists like you and your articles therein that DB is read by so many Indians. It is sad that DB employees & employers think that it is because of them that they are achieving what they are being blessed with. They are freely getting the fruits of what people like you are sowing. They should and i am sure they will understand someday that; 

JUST READING MOST OF FOOLISH ARTICLES/REPORTS/EDITORIALS/LIFE MANTRAS/PERSPECTIVES/MANAGEMENT FUNDAS/BEHIND THE SCREEN/GLAMOUR FEEDS/SPORTS NEWS/NATIONAL-INTERNATIONAL NEWS/BUSINESS NEWS/INSURANCE-FINANCE-ASTROLOGY COLUMNS DOES NOT NECESSARILY MEAN THAT WE ENDORSE MOST OF THEIR PATHETIC VIEWS TOO.

Your kind of writing spirit is what i call true leadership journalism and not just a show stopper of sum/some fashion parade or show.......it depicts the true journalism & the true intentions behind which newspaper was being created and published for.....it is because of such actual reporting done after really working hard in the field ( just as you & your team does) that newspapers have early morning necessary part of our lives.

i hope, someday most of the correspondents of this nation will not only talk-talk-talk, blah-blah-blah, preach-preach-preach, advertise-advertise-advertise, dream-dream-dream, comment-comment-comment, judge-judge-judge, corrupt-confuse-convince but also live it on a day-to-day basis in their own lives by taking divine clues from your kind of teamwork, your kind of spirit & your kind of field work-work-work.

God bless you...

This clip for your holy spirit:
O baanvre...suun to le zara

This one for you:
Harsh talks Hardtalk India