प्रिय मधु किश्वर जी,
मामला क्या है, कैसा है, कितना है, किसका है, स्वतंत्रता का है, स्वछंदता का है, हुल्लड़ बाजी का है, मानसिकता का है, या जैसा है वैसा है - बस 'है' , ये तो बस परम्पूर्ण इश्वर ही सम्पूर्णता से जानते हैं। हो सकता है की आपको भी उनका अंश होने से आंशिक रूप से 'सत्य' का ज्ञान/भान हो जो की 'दैनिक भास्कर' के सम्पादकीय पृष्ठ पर आपकी अभिव्यक्ति के रूप में छपे आपके आज के विचारोत्तेजक लेख "मामला केवल बोलने की आज़ादी का नहीं" पढ़कर ज्ञात होता है। सबकुछ भली-भाँती और नेकी की नियत से लिखा हुआ होने बावजूद भी आपका लेख अन्तत: केवल स्थिति को और अधिक उलझाने में ही सफल होता है बजाये सुलझाने के। ठीक भी है की हम सबको अपनी-अपनी उलझने स्वयं ही सुलझानी होती हैं।
किसकी भाषा क्लिष्ट
किसकी अभिव्यक्ति बाधित
और
किसका सम्प्रेषण दूषित?
हमको नहीं पता
हमको कूऊऊऊछ नहीं पता ...
और
थोडा-बहुत पता अगर कुछ भी हो
तो
फैसला करने वाले हम कौन?
क्या ये हक हमें हासिल है?
गालिबन
बस एक तमाशा है
जो देखते हैं हम बस एक तमाशबीन बन
इस बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल में
होता है शब्-ओ-रोज़ एक तमाशा हमारे आगे
अपनी-अपनी दृष्टि, डॉक्टरेट या मर्म के मुताबिक !!
अब जीने की राह दिखाने वाले पंडित विजयशंकर मेहता जी को ही देखिये ना। उन्हें शायद ये पता ही नहीं है की मीनोपॉज के बाद महिलाओं को हुए हार्ट अटैक की संख्या में किस कदर इजाफा होता है। ठीक भी है जो पंडित जी दिल से बहे आंसुओं को महज खुद को हल्का करने की एक कसरत भर समझता हो वो दिल की लगी को दिल्लगी ही तो समझेगा। उसे क्या पता की हो सकता है की परमशक्ति भी संसार की ऐसी नामाकुल हालत देख संसार के जगत कल्याण की आस में एकांत में रुदन करती हो।
प्लेटो जी ठीक कह गए है की "अगर इंसान शिक्षा की उपेक्षा करता है, तो वह लंगडाते हुए अपने जीवन के अंत की तरफ बढ़ता है।"
फिर एक तमाशा और देखिये जो प्रभु की भोजशाला में और भी पैनी कर रहा है अपनी दोमुखी तलवार की स्वयंभू धार। सूखी खांसी से खडखड़ा रहे, जाने किस बात पर शंकराचार्य कहलाये जाने वाले ये तथाकथित नरेन्द्रनाथ सरस्वती जी, शंकर द्वारा स्थापित 'अद्वैत' को जाने-समझे बगैर बस लगे हुए हैं प्रशासन को डराने-धमकाने में इश्वर का फकत नाम ले लेकर अपना खुद का कुप्रशासन स्थापित करने में। अब इश्वर कोई आतंकवादी तो नहीं जो सरेआम इन नरेन्द्रनाथ जी को अर्ध-नग्न दिखा कर x-ray करवा रहें हैं। शायद वो इन साहब को कह रहे हैं की रुक जा, संभल जा, नेकी का, दिन-ओ-ईमान का, मोहब्बत का, सुकून का रास्ता अख्तियार कर ले ऐ बन्दे की हम देख रहे हैं सबकुछ जो चल रहा है तेरे दिल-ओ-दिमाग में। सब कुछ वही हुआ है अज़ल से, जो हमने चाहा है, वही हो रहा है जो हमें है मंजूर और वही होगा जो हमें है कबूल। तेरे किये-कराए, तेरी मंशाओं से, तेरे नापाक इरादों से, तेरे धरम-करम से, तेरे धर्मानुअन्ध होने से तू सिर्फ फसाद की जड़ बन रहा है। जाने कब इन्हें माँ सरस्वती सत्यनिष्ठा का, सच्चरित्रता का, सहजता का मार्ग दिखा कर इस आनंद और उत्सव के मार्ग पर चलने की रौशनी देगी? हम तो बस ये दुआ कर सकते हैं, ये प्रार्थना कर सकते हैं की इन साधुओं, संतो, पंडितो, मौलवियों को रौशनी का ये वरदान जल्द से जल्द प्राप्त हो। जगत का कल्याण हो।
रही बात आपकी मधु किश्वर जी, तो हम ये निवेदन करेंगे की आप खलील जिब्रान द्वारा रचित/लिखित THE PROPHET पुस्तक का ध्यानस्थ हो एक बार फिर से अध्यन करें। ख़ास तौर से LOVE, LAW, CRIME & PUNISHMENT वाले chapters का ताकि आप इस उलझाव से मुक्त हो समाज के सामने सुलझाव का मार्ग प्रशस्त कर सकें।
आपकी सुविधा के लिए ये पुस्तक e-book format में इस नाचीज की अदना सी समझ के साथ इस link पर सहज उपलब्ध है
बन्दा आपका तहेदिल से एहसानमंद और शुक्रगुज़ार होगा अगर आप इस इ-बुक को आपके पढने लायक समझ खरीद सकेंगी।
ये एक छोटा सा तोहफा भी अपना कीमती वक़्त देकर कबूल कीजियेगा ...please
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