पंडितजी उवाच
आप कहते हैं तो मानी लेते हैं पंडितजी
की
दुनिया परमात्मा का घड़ा है
इंसान जिसमे इल्म का सेब खाकर खड़ा है
कर रहा आबे जम जम को वो नापाक अपनी करतूतों से रोज़
मनवा उसका परम पूज्य परमात्मा से भी लेकिन बड़ा है
दुःख से बचना तो वो चाहता है
पर सुखों की फरमाइश पर वो अड़ा है
चुनता है वो सिर्फ संसारी घड़े को
परमात्मा तो जैसे उसके मुहँ बाएँ खड़ा है
रचा था मनु को/आदम को उसने पुतले की ही तरह
पर
फिर फूँक दी अल्लाह ने उसमे अपनी ही जान
क्या करता ..??
की
मोहब्बत का जज़्बा कई पोथियों से बड़ा है
जानता था वो खुदा
की दूर कर रहा है वो खुदी को खुद से
रचकर ये बेइन्तहा खुदाई
मालुम था उसे ये भी मगर
की होगा जो भी उसका सच्चा आशिक़
फिर एक हो जाएगा वो उसी से किसी दिन
ना हुआ जो तो क़यामत तक वो
इस मायावी घड़े में बस सड़ा ही सड़ा है
दीन-ओ-ईमान की राह पर चलने वालो को
बक्शा है उसने वो इश्क-ओ-जूनून
जो किसी भी पूजा या नमाज़ से जियादा
हैरत अंगेज़ और रूहानी सिलसिला है
मज़ा जो बिछड़कर मिलने में है
वो क़ायम सदा पहलु-ए-यार में नहीं
की हुआ तुम्हारे दिल को कभी किसी से प्यार ही नहीं
खाते रहे तुम बस इल्म का सेब
जान-ए-जान में आया तुम्हे कभी लुत्फ़ ही नहीं
तुम क्या जानो पंडित/मौलवी
की ये दिल की लगी होती है, होती कोई दिल्लगी नहीं
देख-सुन लो ये नुसरत फ़तेह अली खान साहब की रूहानी क़व्वाली
की तुम्हे दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी
मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो
आका मिलेंगे तुम्हे वहाँ
रूमी होते है शायर जहाँ
जो यूँ ही नहीं कह गए की
सही-गलत (सुख-दुःख) के पार आकर तो देखो
ज्यूँ की त्यूं धर देनी पड़ती है चदरिया जहाँ
ना कोई परमात्मा और ना कोई घड़ा होता है वहाँ
गंगा जल या आबे जम जम का भी बस यूँ समझिये
की तसव्वुर के आलम में बस एक ज़िक्र-ए-लबरेज़ होता है वहाँ
क्या क्या बताएँ, कितना बताएँ और क्यूँकर बताएँ हम
की
ना हम होते हैं ना तुम होते हो वहाँ
होता है बस
प्यार ही प्यार
बस प्यार
बस प्यार, बस प्यार, बस प्यार
Listen and watch this too
with love
Man is bad case.... isn't it?
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